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भ्रष्टाचार से लिप्त समाज में रहने की मज़बूरी के साथ दिए गए उत्कोच की प्रतिपूर्ति कहाँ से हो ,प्रत्येक व्यक्ति के समक्ष यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो जाता है . प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता सिमित होती है . साधन सिमित होते है वह प्रतिरोध नहीं कर पाता.मूक द्रष्टा बन कर केवल देखने एवं उनके मांग के अनुरूप आचरण करने को वह अपनी नियति मन बैठता है तथा उसी धारा में बहने के लिए बाध्य हो जाता हैं ,और फिर भ्रष्टाचार रूपी मशीन का एक पुर्जा बन कर रह जाता है . फिर चाहकर भी उस दुष्चक्र से नहीं निकल पाता. यदि वह व्यक्ति दुस्साहस करता है तो उसका ह्रस्र जे. डे.के समानहोता है . दो चार दिन टी.वी., समाचार पत्रों की सुर्खियाँ लिखी जाती हैं , शोक सभा होती है , कैंडिल मार्च होता है , नेताओं के भाषण होते है , फिर कुछ दिनों बाद किसी और जे डे. की हत्या होती है और पुन्ह वही दौर शुरू हो जाता है . परन्तु मूल प्रश्न अनुतरित रह जाता है , भ्रस्टाचार,कालाधन , माफिया राज . न तो यह निर्मूल होगा न तो जेड़ियोंकी हत्याएं रुकेंगी . केवल टी.वी. पर नेताओं के सन्देश एवं समाचार पत्रों की सुर्खियाँ बनती रहेंगी और एक एक निर्भीक पत्रकार कम होतें रहेंगे , बाकि अपनी धुन में मस्त , इतना जोखिम क्या लेना .
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