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आगे न कुछ कहना ?

bebaak
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प्रकम्पित आँख कह जाये दिलों की बात गिर उठ कर
कहूँ जब आप से हमदम ,कहो ,आगे न कुछ कहना |

तुम्हारी इक नज़र पर हर नज़र कुर्बान कर दूँ मैं
न रोको आज भोले मन ,कहीं ,आगे न कुछ कहना |

मचलती कामना रोकूँ ,या रोकूँ, आज अपने को
तड़पते हम यहाँ दिन रात ,फिर ,आगे न कुछ कहना |

सुधा मय आज दुनियां है ,सुधा सुधियाँ नहीं लेती
बिखरता हर घडी हर पल ,सुनों ,आगे न कुछ कहना |

बहुत खोजा तुम्हारी आँख में तस्वीर पहले की
मिला ,झोला ,वही चश्मा ,रुको ,आगे न कुछ कहना ||
———–कृष्ण जी श्रीवास्तव

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