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धुप अल्मोड़े की

bebaak
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आंसू को पोरों से पोंछती
चम्पई रंगों को
पेड़ों में खोंसती
निखर रही हँस-हँस कर
रात की सताई
अलसाई
धुप अल्मोड़े की |
बनी है सुहागन
सुहाग से नहाई आज
पेड़ों के झुरमुट से झांकती
निरख रही अपना साम्राज्य
ऐसी बनी है नवेली
अकेली ,धुप अल्मोड़े की |
बदल रही पग -पग पर
चुनर का रंग
प्रियतम के चरणों में
अटक गया अंग
धानी, हरित ,पीत,नीली ,ललाई
प्रिय के प्यार में पूरा नहाई
मनभाई,धुप अल्मोड़े की |
पंछी के कलरव में
थिरक मुस्काती
आहट ,परछाई की
खूब शरमाती
चन्दन सी महक भरी कंचन की काया
सिंदूरी सतरों में चमक उठी छाया
गदराई ,धुप अल्मोड़े की ||
———–कृष्ण जी श्रीवास्तव

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