Menu
blogid : 5699 postid : 73

अन्ना ::कुछ कहने के लिए कहना

bebaak
bebaak
  • 113 Posts
  • 1683 Comments

unमंत्रियों को अपनी संपत्ति का व्योरा ३१अगस्त तक देना था |कुछ लोगों ने नहीं दिया तो इसमें कौन सा पहाड़ टूट पड़ा |उनके पास देश के कितने जरुरी काम हैं | ये पी.यम .ओ .वाले भी बड़ी अजीब चीज हैं |सस्ती लोकप्रियता के लिए आदेश जारी कर दिया | ऐसा भी कभी हुआ था |पांच साल बाद चुनाव आयोग हिसाब मांगता था ,लोग बाग दे देते थे |अब ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा है कि बाज़ार भाव की तरह हर समय संपत्ति का व्योरा दो |काम कब करेंगे | आप ही सोचिये क्या यह जुल्म नहीं है |इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई जानी चाहिए |कितने व्यस्त लोग हैं ,इनका एक एक मिनट कीमती है | एक मिनट में तो एक बिल पास कर देते हैं ,जिस पर देश का भाग्य निर्भर करता है |
बच्चे कम पैदा करो ,इस पर भड़क जाते हैं | क्यों न भड़कें ,यह बात सांप्रदायिक जो है | मांग उठती है कि आरक्छन की समय सीमा निर्धारित करो तो समय सीमा निर्धारित कर दी जाती है |परन्तु फिर भी वे अभी दलित ही हैं ,तो फिर बड़ा दी जाती है |आगे फिर बड़ा दी जाती है | बार बार बढाने से अच्छा है कि इसे अनन्त काल तक के लिए क्यों नहीं बड़ा दिया जाता ? जब एक समय सीमा निर्धारित हो गयी तो उतने में उत्थान क्यों नहीं हुआ ,कोई पूछेगा इनसे ?यदि पूछेगा तो वह वर्ग विद्वेष का दोषी होगा |
अन्ना का आन्दोलन हुआ ,उन्होंने किसी को आमंत्रण पत्र नहीं भेजा था ,ये उनकी गलती थी |उन्होंने पुरे देश को आमंत्रित किया था |सभी लोग अपने आरक्छन के अनुपात के अनुरूप क्यों नहीं शामिल हुए | क्यों सभी लोग अपनी जाति का झंडा बैनर लेकर शामिल नहीं हुए ,जिससे पता चल जाता कि किस जाति /समुदाय के कितने लोग थे |इसका बहुतों को अफसोस है | यह कितना बड़ा विरोधाभास है |जब फल मिलने ,श्रेय लेने का समय आया तो दलितों को उस अनुपात में शामिल नहीं किया गया ,ऐसा कहा जा रहा है | तो बाबा पिसान पोत कर भंडारी बन जाइये किसने रोका है |अन्ना कि भीड़ में कितने किस जाति के थे ,कितने किस समुदाय के थे ,किसी चैनल /सर्वे एजेंसी के पास हो तो इन्हें दिखाए| शामिल लोग देश भक्त थे और देश भक्तों की कोई जाति नहीं होती |अब्दुल हामिद मुसलमान नहीं भारतीय थे ,इन्हें कौन समझाये | अब सवाल करेंगे कि परमवीर चक्र ,पदम् पुरस्कार ,अर्जुन पुरस्कार इत्यादि जन संख्या के आधार पर क्यों नहीं दिया जा रहा है ,यदि किसी के पास इसका जबाब हो तो इन्हें बतावे |
दलित शब्द कब ख़त्म होगा ,इसके बारे में कोई नहीं बोलता |इसे ख़त्म होने ही नहीं दिया जायेगा | क्योंकि जब तक यह शब्द रहेगा तब तक इनकी टोपी उजली रहेगी |अब तो यह भी प्रश्न उठेगा कि जो भ्रष्टाचार में लिप्त थे वे अन्ना के साथ नहीं थे |यदि भ्रष्टाचार से त्रस्त हैं तो फिर अपना आन्दोलन शुरू करें ,आवाज़ उठायें |जहाँ तक मैं जनता हूँ ,भ्रष्टाचार के विरोध का अन्ना द्वारा ट्रेडमार्क प्राप्त नहीं किया गया है |जो लोग मंच पर बैठने के आदी हैं ,वे झंडा क्यों उठाएंगे | उन्हें तो बस कुछ कहने के लिए कहना है |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply