Menu
blogid : 5699 postid : 89

मथ्कुच्चन -पार्ट -1

bebaak
bebaak
  • 113 Posts
  • 1683 Comments

ट्रेन का सफर भी बड़ा मजेदार होता है |टिकट कटाने से लेकर चढ़ने तक में ज्ञान की कितनी ब्रद्धि होती है यह भुक्त भोगी ही जानता है |तात्कालिक ज्ञान तो इतना विस्तृत हो जाता है कि मनुष्य पूर्ण मनुष्य बन जाता है |इस पर शोध होना चाहिए ,और आपको भी वो लम्बी लाइन में खड़ा होकर कभी कभार टिकट कटाना चाहिए ,ऐसे ही जैसे रिफ्रेशर कोर्स होते हैं कभी कभी | फिर देखिये कौवा ,बिल्ली ,गिद्ध, स्यार ,शेर, हाथी ,उल्लू ,गर्दभ सभी के मुख्य गुण स्वमेव आप में समाहित हो जायेंगे |किसी पाठशाला कि आवश्यकता नहीं पड़ेगी | मैंने भी लाइन में खड़ा होकर टिकट कटवाया फिर ट्रेन में चढ़ने का प्रयास करके तीन बार गेट से बाहर हो गया |अब चढ़ने वालों की तकनीक का अध्ययन करके अन्दर घुस गया |चार पांच स्टेशन बिताने के बाद किनारे पर थोड़ी जगह मिली ,तत्काल मैं उसमें समां गया |हाथ पैर सीधा किया |कुछ देर पहले जिन दो सज्जन में चिख-चिख हो रही थी ,दोनों अब बगलगीर थे |तमाम चर्चाएँ हो रही थीं |मैंने भी कान को उनकी ओर लगाने का प्रयास किया |एक सज्जन बोल रहे थे ,वर्मा जी आज का अखबार पढ़ें हैं ,देखिये न देश में क्या क्या हो रहा है |वर्मा जी दार्शनिक मुद्रा में बोले ,यह सब एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़ है एक दुसरे को निचा दीखाने का यज्ञ है |कौन कितनी बड़ी आहुति देता है ,इसी पर बाज़ी निर्भर करेगी | वर्मा जी का दार्शिकाना चेहरा ,गमछे के नीचे कितना सुन्दर लग रहा था | पहले वाले सज्जन ने कहा राजा साहेब काफी दिनों के एकांत वास के बाद आज बोले हैं |चैनल वाले कैसे पीछे पीछे दौड़ रहे थे |वर्मा जी मुखर हुए |
भारतीय समाज अजूबों से भरा है |पहले ज्योतिषी ,नजूमी ,ओझा सोखा हुआ करते थे ,जो भविष्य बताते थे |चोरी हुए सामान का चोर बताते थे ,डाकिनी साकिनी की पहचान करते थे ,जिससे समाज में तमाम विसंगतियां लड़ाई झगड़े मारपीट तक हुए |अब वर्तमान समय में भी कुछ भविष्य वक्ता उत्पन्न हो गए हैं |जो समय समय पर नाग की तरह अपनी जहरीली वाणी का चमत्कार करते रहते हैं | उनमें राजा साहेब अव्वल हैं |किसी भी घटना के बारे में घटना होने के तुरंत बाद अपना ओझा ज्ञान प्रस्तुत करते रहते हैं |हम आप प्रलाप को सुनते रहते हैं ,जैसे पागल को लडके पत्थर मार रहें हो और वह जोर जोर से चिल्ला कर गाली दे रहा हो |सभ्य जनों को उस पर तरस आती है ,बच्चों को रोकता है ,फिर पागल को दुलराता है ,खाने को देता है ,क्यों की वह तो पागल है ,उसकी बात का बुरा क्या मानना !कुछ लोग बच्चों को शह देते हैं,उन्हें सिखाते हैं ,मार कर आना पिटा कर नहीं | बच्चे गली में मारपीट करते हैं ,फिर मोहल्ले में ,फिर —फिर —-| जब वही घर में करते हैं तो मनबढ़ का ख़िताब पाते हैं |यही हाल राजा साहेब का है |जब चाहें जहाँ चाहे इसकी टोपी उसके सर ,उसकी टोपी इसके सर करते रहते हैं |आगे देखिएगा ये अपने घर में भी उठा पटक करेंगे |वर्मा जी एक साँस में बोल गए |उन्होंने आगे जोड़ा कि भईये भारतीय राजनीति का रंग सूर्योदय ,सूर्यास्त के समय बदलते आकाश कि तरह पल -पल बदल रहा है ,परन्तु डर है कि यह लाल पीला, नीला की जगह पर कहीं एकदम काला न हो जाये | फिर उन सज्जन ने कहा ,बात तो आप ठीक कह रहें हैं परन्तु यह तो उनका काम है ,देश के नेता हैं ,वे तो बोलेंगे ही ,नहीं बोलेंगे तो लोग कहेंगे नेता कैसे ,टी.वि.से दूर हुए नहीं की राजनीति मरी नहीं |
मेरा स्टेशन आ रहा था | उतरने वाले अपना सामान समेट रहे थे |बैठने वाले अपने सामान की निगरानी कर रहे थे |मै भी उतरने के लिए रास्ता तलाश रहा था |वर्मा जी का साथ छोड़ने का मन नहीं कर रहा था ,ये तो रोज आतेजाते रहते है ,फिर कभी, साथ का इंतजार रहेगा ,फिर आपको भी शामिल करूँगा |नमस्कार |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply