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हिन्दूआतंकवाद और प्रजातंत्र

bebaak
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हिन्दू आतंकवाद सुन कर इन राजनीतिज्ञों की बुद्धि पर तरस आया और अपने पर गर्व महसूस हुआ कि हम इनके युग में रहतें हैं ,जहाँ किसी को कुछ भी बोलने की आजादी है |. नामकरण व्यक्ति ,समुदाय,जीव वस्तु को संबोधित करने का माध्यम है | कोई भी अपना नाम स्वयं नहीं रखता ,उसके बनाने वाले या अन्य के द्वारा रखा जाता है | जैसे तीन कमरे का मकान हो तो आगे का कमरा ,बीच का कमरा ,पीछे का कमरा ,किचेन के बगल का कमरा उच्चारित किया जाता है | इसी प्रकार मनुष्य या समुदाय ,वस्तु ,जीव ,का नामकरण किया जाता है | हाँ गरीब माँ बाप द्वारा बिना डिक्शनरी देखे नाम रख दिया जाता था तब उच्च पदस्थ होने पर नाम बदलने की जरुरत होती थी ,माँ बाप तो बदले नहीं जा सकते थे ,नहीं तो वे भी बदल दिए जाते | स्वयं द्वारा दिया गया नाम उसकी विकृत मानसिकता का द्योतक होता है | अहम् का प्रतिक होता है |
अब प्रश्न उठता है कि हिन्दू कौन है ?जो धोती कुरता पहने वह हिन्दू है ,पैंट शर्ट पहने वह हिन्दू है ,पैजामा कुरता पहने वह हिन्दू है ,लुंगी पहने वह हिन्दू है | जो चोटी रखे वह भी हिन्दू ,जो चोटी न रखे वह भी हिन्दू ,जो टीका लगावे वह हिन्दू ,जो टीका न लगावे वह भी हिन्दू ,जो एक देव को मानें ,जो बहु देव को मानें ,जो निराकार को मानें जो किसी को भी न मानें ,सब हिन्दू | न तो कपडे से हिन्दू पहचाना जा सकता है न तो अन्य किसी विधि से ,तो फिर यह हिन्दू कौन है ?हिन्दू तो मानव कल्याण के लिए निर्धारित मानदंडों को मानने वाला जीव है ,इसके अतिरिक्त और कोई हो ही नहीं सकता | इस प्रकार जो समस्त मानवता के कल्याण की बात करे ,जो मनुष्यता की बात करे ,जो इंसानियत की बात करे वह हिन्दू है|मंदिर जाने वाला भी हिन्दू ,घर में पूजा करने वाला भी हिन्दू ,पूजा नहीं करने वाला भी हिन्दू |शाश्वत एवं सत्य जीवन पद्धति को मानने वाला ही हिन्दू है |इसमें कुछ भी मानने की बाध्यता नहीं है हिन्दू संप्रदाय नहीं है ,जिसे मोटी भाषा में (आजकल के अर्थों में )धर्म कहा जाता है ,उसमें कुछ आवश्यक बातों को मानना अनिवार्य होता है | परन्तु हिन्दू नामक जीवके लिए कोई वर्जना नहीं कोई बाध्यता नहीं ,केवल जीवन को सुन्दर बनाने एवं मानव मात्र के कल्याण की कामना की जाती है |इसमें किसी से कोई विरोध नहीं ,कोई आता है , कोई शर्त नहीं ,कोई जाता है कोई विरोध नहीं ,केवल मनुष्य मात्र का कल्याण हो यही जीव के आचरण से अपेक्छा की जाती है | फिर हिन्दू के साथ यह विशेषण कैसे जोड़ा गया ? क्या पूरी मानवता आतंकवादी हो गयी है या फिर लोग आतंकवादियों की धमकियों से अपना पाप छुपाने के लिए “हिन्दू आतंकवाद “को गढ़ रहें हैं ,या किसी को खुश करने के लिए | हिन्दू एक जीवन पद्धति है ,इसे सभी ने सभी जगह स्वीकारा है ,तो क्या पूरी जीवन पद्धति आतंकवादी हो गयी है ?क्या इस छेत्र का रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति आतंकवादी हो गया है |शब्दों से इस तरह खिलवाड़ रोकना ही पड़ेगा |ये तो चाहते ही हैं कि इस जीवन पद्धति को विनष्ट कर दिया जाय जो कि सदियों से निर्वाध ,अविचल प्रवाहित होती आ रही है ,इसमें भी दाग लग जाय | इन लोगों से पूछना चाहिए कि वास्तव में हिन्दू आतंकवाद से इनका आशय क्या है ?भारत भूमि पर रहने वाला एक देव पूजने वाला आतंकवादी है या बहुदेव वाला या किसी देव को न मानने वाला (निराकार को मानने वाला )आतंकवादी है ?क्योंकि ये सभी अपने को हिन्दू कहते हैं |यह प्रश्न तो भारत के हर नागरिक को पूछने का अधिकार है कि क्या वह आतंकवादी है | यदि नहीं तो कहने वालों को जबाब देना चाहिए उन्होंने भावनाओं के साथ खिलवाड़ क्यों किया | देश में विद्वेष फैलाने के लिए जिम्मेदार कौन है ?क्या यह भारत में रहने वालों को उकसा कर आतंकवादी बनाने का षड्यंत्र तो नहीं ,क्या ये आतंकवादियों से मिले हुए तो नहीं ?आजकल के राजाओं को इससे क्या लेना देना ,ये तो अपभ्रंश को ही सत्य मान बैठें हैं |सत्य का रूप देखना इनको गवांरा नहीं |ये भेंड के समूह की तरह व्यवहार कर रहें हैं ,कठपुतली की तरह नाच रहें हैं ,अपनी मेधा जैसे है ही नहीं ,नेता जैसे नचाये वैसे ठुमक -ठुमक ,वाह रे स्वामी भक्ति | इसी पर एक कहानी याद आ रही है |
मैंने कच्छा-७ की संस्कृत की पुस्तक में एक छोटी कहानी पढ़ी थी |आप सभी के साथ उसे बांटना चाहूँगा |एक ऋषि के गुरुकुल से शिष्य सभी मानदंडों को पूरा करते हुए उत्तीर्ण हुए |गुरुदेव ने कहा कि आप सभी ,सभी विद्याओं में पारंगत हो गए हैं |अब अपनी जीविका चलाने हेतु अपने पसंद का व्यवसाय चुन लो या कर्म करते हुए समाज कि सेवा करो |सभी विद्यार्थी अपनी पसंद की जगह को चल दिए |उनमें से “क” नामक विद्यार्थी “अ” राजा के दरबार में नौकरी के लिए चल पड़ा |काफी देर बाद एक जंगल पार कर वह एक तालाब के पास पहुंचा , वहां कुछ चरवाहे गाय, भैंस ,भेंड इत्यादि चरा रहे थे |उसने उनसे “अ”के राजमहल जाने का रास्ता पूछा | चरवाहों ने रास्ता बताते हुए जाने का प्रयोजन पूछा |”क” को अपनी विद्वता पर पूरा भरोसा था तथा घमंड भी था |उसने कहा कि वह फंला गुरुकुल का सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी रहा है ,राज दरबार में जाकर शास्त्रार्थ करना चाहता है | चरवाहों में से एक ने कहा ,शास्त्रार्थ करना है तो यहीं से प्रारंभ करिए |यहाँ हममे सबसे ज्ञानी “ख” हैं | “क” राजी हो गया ,उसे तो अपनी विद्वता का घमंड था ,फिर पूछा निर्णय कौन करेगा ? सभी चरवाहों ने कहा हम लोग तो हैं ही |हम सब मिल कर निर्णय करेगें | “क” राजी हो गया ,उसे तो अपने ज्ञान का घमंड था |शास्त्रार्थ प्रारंभ हुआ |सभी चरवाहे एक जगह इकट्ठा हो गए |पहले बोलने की बारी “क” की आई |उसने गुरुकुल में प्राप्त पूरा ज्ञान उड़ेल दिया |ब्रम्ह से लेकर शुन्य तक ,द्वैत से लेकर अद्वैत तक की मीमांसा कर डाली |संतुष्ट होकर चारों तरफ गर्व से देखते हुए उसने अपना व्याख्यान सामाप्त किया | उस समय आधे चरवाहे कम्बल लपेट कर कुनकुनी धुप में सो रहे थे |अब बोलने की बारी “ख” चरवाहे की थी |उसने प्रारंभ किया |प्रिय मित्रों ,शरद का मौसम हो ,कुनकुनी धुप हो ,गरम गरम रोटी हो ,उस पर चुपड़ा घी हो ,साथ में गुण हो ,पास में प्रेयसी हो तो वह जीवन कितना आनंद मय होता है |चरवाहों की तालियों की गूंज प्रारंभ हो कर काफी देर तक बजती रही |वाह- वाह देर तक गूंजता रहा | “क” ने कहा ,अब निर्णय हो जाय |सभी चरवाहों ने एक स्वर से कहा ,निर्णय तो हो चुका है ,आप पता नहीं क्या क्या ,ब्रम्ह ,शुन्य द्वैत ,अद्वैत बोल रहे थे | “ख” ने कितना सुन्दर कहा |चरवाहे “ख” को कंधे पर उठा कर उछालने लगे और विजेता घोषित कर दिया |
यह केवल कहानी नहीं है ,आज की वास्तविक तस्वीर है |नारद के विष्णु रूप धरने तक तो ठीक है ,उछालने -कूदने पर कृपया उन्हें पहचानिए ,ये विष्णु नहीं नारद हैं | इसी कहानी को आधार बना कर कई मुख्य मंत्री वर्षों तक राज्य किये ,आगे भी प्रयास जारी है | यही भारतीय प्रजातंत्र है जिसकी हम दुहाई देते हैं |
—–इस कहानी के पात्रों के वास्तविक नाम याद नहीं हैं अतः क ,ख ,अ नाम दे दिया गया है |

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