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आतंक का “वाद” एवं उसका निवारण jagaranjunctionforum

bebaak
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पृथ्वी बनने के बाद जब मनुष्य ने एक साथ समाज के रूप में रहना प्रारंभ किया तभी से आतंक का प्रारंभ रेखांकित किया जा सकता है |आतंक शब्द बहु आयामी है |चोरों का आतंक ,डकैतों का आतंक ,माफिया गुटों का आतंक ,सरकारी कर्मचारियों का आतंक नेताओं का आतंक ,हथियारों का आतंक ,इत्यादि से आगे बड़े देशों का आतंक ,समुदायों का आतंक ,कथित धर्मों का आतंक इसी तरह समाज के हर छेत्र में आतंक का साया दिखाई पड़ जायेगा |किसी देश में स्थित आतंक को समाप्त करने की जिम्मेदारी उस देश की सरकार और उसके नागरिकों की है |सरकार नागरिकों से बनती है |नागरिक रहेंगे तो सरकार रहेगी |आतंकवाद को किसी एक वाद से सम्बंधित करके नहीं देखा जा सकता और नहीं यह कभी शून्य हो सकता है | जैसे रसायन शास्त्र में गैस का आयतन ऊष्मा एवं दाब पर निर्भर होता है ,इसमें दाब को स्थिर रख कर गैस का आयतन ताप के बढ़ने- घटने पर निकाला जा सकता है तथा ताप को स्थिर रख कर दाब कम या अधिक होने पर गैस का आयतन ज्ञात किया जा सकता है |यदि गैस है तो किसी भी स्थिति में आयतन शुन्य नहीं किया जा सकता | उसी प्रकार एक आतंक को स्थिर रख कर दुसरे को ख़त्म करना मृग मरीचिका होगी |अतः आतंक वाद को ख़त्म करने के लिए पहली और आखिरी शर्त है कि सभी प्रकार के आतंक को समाप्त किया जाये |बाबा रामदेव का व्यवस्था परिवर्तन ,अन्ना हजारे का सामाजिक परिवर्तन प्राप्त किये बिना आतंक ख़त्म करना मुश्किल है ||
देश के अन्दर स्थितआतंक को ख़त्म करने के लिए माफिया राज को ख़त्म करना अनिवार्य होगा |इससे जनता का जीवन दूभर है |जनता के एक साथ न उठ पाने के कारण यह स्थिति है |अकेला व्यक्ति इस माफिया राज का सामना नहीं कर सकता है |माफिया राज का प्रकोप इस कदर बढ गया है कि सरकारी कर्मचारी /अधिकारी चाहते हुए भी सही काम नहीं कर पाते हैं |उन्हें हर समय अपने जीवन और ट्रांसफर का डर बना रहता है | डर कर वे उनका काम तो करते ही हैं बल्कि आगे माफिया का अंग बन कर आतंक वाद के चक्र को तेजी से चलाते रहते हैं |सामाजिक अव्यवस्था से ये तमाम आतंक के पर्याय प्रारंभ होते हैं और बाद में “वाद” में परिवर्तित हो जाते हैं |छोटी इकाईयों द्वारा लिए जाने वाले उत्कोच को आज सामाजिक रूप से स्वीकार किया जा चुका है |आगरा के डी.आई .जी .द्वारा उठाया गया कदम ,मील का पत्थर है |इसका प्रयोग हर जिले के हर विभाग में किया जाना चाहिए ,सकारात्मक परिणाम आयेंगे |यह इस सदी की अनोखी घटना है |हर विभाग में क्रीमी पोस्टिंग को लेकर मारामारी है | कोई भी जाँच पुलिस के भरोसे न छोड़ कर सदैव सी ,बी.आई .जाँच की मांग क्यों की जाती है ? क्यों नहीं विभाग के उच्च अधिकारियों एवं सरकारों द्वारा सकारात्मक कदम उठा कर पुलिस की कार्यप्रणाली में विश्वास पैदा किया जाता है ?बिना पुलिस को सुदृढ़ किये आतंक के किसी भी प्रारूप को रोकना संभव नहीं है |पुलिस के कार्य विभाजित करके शांति व्यवस्था एवं जाँच कार्य अलग -अलग क्यों नहीं कर दिए जाते |
एक केंद्रीय मंत्री द्वारा कहा गया कि आतंक वाद से ज्यादा खतरनाक नक्सलवाद है |क्या सरकारों ने जानने का प्रयास किया कि ऐसा क्यों है ?क्या कमी है ?वे क्या महसूस करते हैं?क्या विकास योजनायें पूरी तरह उन इलाकों में लागू हो रही हैं ?कहीं ऐसा तो नहीं कि १०० जा रहा है और केवल १५ वहां पहुँच रहा है ,फिर विकास कैसे होगा ?वास्तविक विकास को देखना होगा |सरकार को नागरिकों को नागरिक की तरह देखने की आदत डालनी होगी ,वोट बैंक की तरह नहीं |इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि इसमें भी बहुत से अपराधी प्रवृति के लोग हैं जो अपना हित साधने के लिए झंडा डंडा उठा लिए हैं | शेड्यूल कास्ट में न जाने कितनी ऐसी जातियां हैं जिन्हें दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती दूसरी तरफ शेड्यूल कास्ट की कुछ जातियों के लोगों को शेड्यूल कास्ट में जन्म लेने के कारण ,जो अमीर हो चुके हैं ,जो गोंव वापस जाना नहीं चाहते हैं उन्हें तथा उनके पालितों को आरक्छन क्यों दिया जा रहा है ? शेड्यूल कास्ट में क्रीमी लेयर की सीमा क्यों बढाई जा रही है ?आरक्छन का लाभ प्राप्त कर जब वे सेवा में आ जाते हैं तो उनका जीवन स्तर कई गुना बढ़ जाता है ,तो क्यों नहीं उनसे उनके वेतन का १० प्रतिशत लेकर एक फंड बना दिया जाता जिससे आगे अन्य पिछड़ों की मदद की जा सके |बनवासियों का शोषण जमींदार ,पटवारी ,साहूकार, सरकारी कर्मचारी स्वतंत्रता के पहले से करते चले आ रहे हैं |अब उनके स्थान को माफिया ने ले लिया है ,उनकी उपज का कितना हिस्सा उनको मिलता है ?पूरे बन छेत्र पर माफिया काबिज़ है |जब बनवासियों की नहीं सुनी गयी तो उनहोंने सस्ता एवं सरल उपाय चुन लिया |आज माफिया की तरह वे खुद सत्ता चलाते हैं |सरकारों को सिर्फ अपने या आज के बारे में न सोच कर यह असमानता ख़त्म करने का प्रयास करना चाहिए वरना पछताने का भी समय नहीं बचेगा |जब कोई नई कालोनी बनती है और इक्का दुक्का लोग रहना शुरू करते हैं तो वहां आये दिन चोरी होती है |यही हालत वनांचल छेत्रों की है\ वहां विकास का पूरा पैसा पहुँच ही नहीं पा रहा है तो गुस्सा होना ही है |
भारत में मेधा की कमी नहीं है | आतंकवाद पर सामाजिक राजनीतिक अर्थशास्त्र के विद्वानों ,प्रोफेसरों का अलग अलग जगहों पर सेमिनार ,कार्य शालाएं आयोजित करके उनके सुझाव आमंत्रित किये जा सकते हैं |बड़े समाचार पत्र समूह यह काम बड़ी आसानी से कर सकते हैं |किसी को तो आगे आना ही होगा |
आज जिस अर्थ में “आतंक -वाद”शब्द युग्म का प्रयोग किया जा रहा है उसको रोकने के लिए विदेशी नागरिकों का पूरा लेखा जोखा सरकार के पास रहना चाहिए | कितने देश के नागरिक हैं ,कितने विदेशी आये ,कितने गए ,कितने गायब हो गए |सरकारें या विभाग बड़े गर्व से बताते हैं कि इतने विदेशी नागरिक आये थे और इतने गायब हो गए |उनका पता कौन लगाएगा ?देश के नागरिकों को नहीं सोचना चाहिए कि हमसे क्या मतलब | ऐसी अव्यवस्था ही हो गयी है कि प्रत्येक व्यक्ति अब कतराने लगा है |सभी को देश की जगह अपनी जान प्यारी हो गयी है |जैसे पुराना जर्जर मकान जब गिरने लगता है तो लोग जो भी सामान सामने दिखाई पड़ता है उसे ही लेकर भागने लग जाते हैं |
यह मानवीय गुण है कि व्यक्ति अपने दुःख से दुखी नहीं होता बल्कि पडोसी के सुख से दुखी होता है |भारत के लोग सदैव से मेहनती रहें ,कृषि, पशुपालन ,एवं व्यवसाय में अपने पडोसी देशों से आगे रहे |धनधान्य से सम्पन्न रहे | इसी कारण लुटेरी जातियों /समुदायों द्वारा सदैव आक्रमण होता रहा | आज फिर भारत का नवयौवन अपने रास्ते पर निकल चुका है | अब इसकी रफ्तार ऐसी ही रहे यह सरकार कि जिम्मेदारी है |अपनी थैली एवं कुर्सी का मोह छोड़ना पड़ेगा वर्ना आने वाली नस्लें माफ नहीं करेगी |पड़ोसियों की गिद्ध दृष्टि हमारी तरफ लगी हुई है |इनसे सतर्क रहने की जरुरत है | देश का विकास हमेशा शांति काल में होता है |इतिहास बताता है कि देश का स्वर्ण काल तब होता है जब सीमाएं सुरक्छित रहें ,आतंरिक सुरक्छा रहे ,महिलाएं स्वतंत्रता पूर्वक आ जा सकें , आतंरिक स्थायित्व रहे ,किसी वाद का वर्चस्व न होकर मानव वाद को प्रश्रय दिया जाय ,भले ही नीति नियंता किसी भी वाद को मानने वाले हों | उसे ही वास्तविक विकास कहा जा सकता है | भारत विकास की तरफ बढ़ रहा था परन्तु विगत पाँच वर्षों का इतिहास देखा जाय तो यह पाया जायेगा कि यह ज्ञात भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय रहा है |इसे मिटाने का प्रयास होना चाहिए |यदि देश में विकास लाना है ,आतंक वाद ख़त्म करना है तोयह जो चारो ओर भ्रष्टाचार का हा -हा कार मचा है ,उसे समाप्त करना होगा |शांति स्थापित करनी होगी |नागरिकों में परस्पर सौहार्द्य स्थापित करना होगा |
सभी को सभी की भावनाओं का, एक साथ रहने के लिए ,ध्यान रखना जरुरी होगा |घर में छुपे आतंकवादियों के मूल स्थान को ,उनके उत्पन्न होने की परिस्थितियों को नष्ट करना होगा |विदेशी आतंकवादियों की उत्पन्न होने की परिस्थितियों को तो हम बदल नहीं सकते परन्तु उनके उत्पन्न होने वाले स्थान ,ट्रेनिंग स्थल को तो ध्वस्त कर सकते हैं |यदि अमेरिका और छोटा सा देश इश्रायिल कार सकता है तो हम क्यों नहीं ?अन्यथा हमें अगले बम विस्फोट का इंतजार करना होगा उन्हें पकड़ने के लिए |आतंक वाद को किसी समुदाय से जोड़ना उचित नहीं होगा | देश को इसमे उलझना भी नहीं चाहिए |कुछ दिग्भ्रमित जान बुझ कर इस तरह की बातें करेंगे |यदि किसी का ब्रेन वश कर दिया जाय तो वह क्या किसी संप्रदाय का रह जाता है |उसी समय से उसका संप्रदाय आतंकवाद हो जाता है |उसका धर्म तो आतंक फैलाना होता है |मानवता के हित में उसे एवं उसके उत्पादन स्थल को नष्ट करना ही उचित होगा | बस राष्ट्र एवं सरकार की इच्छा शक्ति की जरुरत है |

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