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न्यायायिक प्रक्रिया में जाँच की प्रासंगिकता

bebaak
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मानव सभ्यता के विकास के साथ -साथ समाज को सही दिशा देने के लिए नियमों एवं कानूनों का निर्माण किया जाता रहा है भारत की जनता को एक सुव्यवस्थित जीवन शैली में ढालने के लिए बहुत मंथन के बाद कार्य पालिका , न्याय पालिका एवं विधान निर्माण के लिए अलग-अलग संस्थाओं का गठन किया गया . न्याय पालिका के सहयोग के लिए जाँच एजेंसियों का निर्माण किया गया . जाँच एजेंसियों में अलग अलग विभाग बनाये गए . इन्हीं जाँच एजेंसियों की जाँच के आधार पर न्याय पालिका द्वारा निष्पक्ष न्याय देने की अवधारणा का विकास हुआ . यह लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जब जाँच एजेंसियां निष्पक्ष , संतुलित , एवं प्रभावी जाँच करें . यह निष्पक्ष , संतुलित , एवं प्रभावी जाँच तभी संभव है जब जाँच एजेंसियां अपने तय मानक के अनुरूप बिना किसी भय के , बिना किसी दबाव के , बिना किसी प्रभाव के जाँच कार्य पूर्ण कर सकें .
जाँच एजेंसियों के अधिकारीयों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति सरकार के निर्धारित मानदंडों को पूरा करने के पश्चात् होती है , तत्पश्चात उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है .भारत में यह प्रशिक्षण विश्व स्तर का है . प्रशिक्षणों परांत निकलने वाले प्रशिक्षु भी विश्व स्तर के ही होंगे , फिर जाँच कर्ता क्यों दिशा हीन हो जाते हैं या क्यों जाँच में इतना अधिक विलम्ब होता है कि जाँच निष्प्रभावी हो जाती है या क्यों जाँच तभी प्रभावी रूप से संपन्न होती दिखती है जब न्याय पालिका इसमें दखल देती है . इसके कई कारक हो सकते हैं परन्तु मुख्य कारक जैसा जन मानस या राजनैतिक दलों कि चेर्चा में आ रहा है , वह है जाँच एजेंसियों पर सरकारी नियंत्रण.
आखिर ऐसा क्या कारण है कि पढ़ा -लिखा और अनपढ़ , धनी या गरीब सभी वर्गों द्वारा जाँच एजेंसियों खास कर सी .बी. आई . को सरकारी नियंत्रण में रखने का विरोध किया जा रहा है . यह केवल राजनैतिक दलों या अन्ना की मांग नहीं है कि सी .बी . आई . को सरकारी नियंत्रण से बाहर रखा जाये बल्कि आज यह जन जन की आवाज बन रही है . जाँच एजेंसियां जाँच कर उसे न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करती है , न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार उस पर सुनवाई होती है , फिर न्यायाधीश महोदय अपना निर्णय सुनाते हैं और हम जोर शोर से , चिल्ला कर , पुरे दम ख़म के साथ कहते हैं न्याय हो रहा है , निष्पक्ष न्याय हो रहा है .
जब जाँच एजेंसियां किसी के निर्देश पर जाँच करें या जाँच कर्ता को डर हो कि उसे कहीं अन्डमान -निकोबार न स्थानांतरित कर दिया जाय या उसे कम महत्व के पदों पर न धकेल दिया जाय, प्रमोशन में कहीं अडंगा न लगा दिया जाय या हर छः महीने में एक पटल से दुसरे पटल पर लुढ़काया न जाय , कहीं ऐसी जगह स्थानांतरित न कर दिया जाय जहाँ से निकलना संभव ही न हो , यदि यही सब डर जाँच कर्ता के दिमाग में बना रहेगा तो वह जाँच क्या करेगा ? अपने आकाओं के निर्देश पर वह रिपोर्ट देगा , वह भी कानून के दायरे में और नतीजा जाँच पूर्ण . अब न्यायिक प्रक्रिया प्रारंभ होगी और दोषी कोई ठोस सबूत न होने के कारण बाइज्जत बरी कर दिया जायेगा . न्याय प्रणाली में अब दोष खोजा जाने लगेगा . परन्तु न्यायाधीश महोदय क्या करेगे , जो तथ्य उनके सामने होगा उसी पर तो न्याय होगा शुद्ध ,परिष्कृत , त्वरित एवं निष्पक्ष तथा प्रभावी न्याय तभी मिल सकता है जब जाँच प्रक्रिया निष्पक्ष , त्वरित ,निर्भीक ,संतुलित एवं प्रभावी हो . किसी व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध यदि जाँच हो रही होगी तो वह चाहेगा ही कि जाँच में विलम्ब हो , उसके विरुद्ध तथ्य न मिलें या हो तो कम से कम हों , उसे बेदाग घोषित कर दिया जाय . इससे जनता का सीधे-सीधे कोई सरोकार नहीं है, परन्तु यह भावना बलवती हो रही है कि बड़ा से बड़ा अपराधी भी जाँच के दायरे से कैसे बच निकलता है .न्यायालय के २ जी स्कैम में दखल देने से जनता की आशा न्याय पालिका से और बढ़ी है .
प्रांतीय स्तर पर पुलिस थाने और पुलिस चौकियां स्थापित हैं . शांति व्यवस्था , कानून व्यवस्था के साथ -साथ अपराधों की जाँच , यातायात व्यवस्था इत्यादि के अतिरिक्त अलिखित तौर पर परिवहन विभाग के कानूनों , वाणिज्य कर विभाग के कानूनों , खाद्य विभाग के कानूनों , मतलब की भारत भूमि पर लागु सभी कानूनों के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का उपयोग उनके द्वारा स्वयं हथिया लिया गया है और प्रयोग किया जा रहा है . शांति व्यवस्था , कानून व्यवस्था के लिए अलग शाखा एवं जाँच के लिए अलग शाखा तथा सभी विभागों के कानूनों की जाँच के लिए उनके विभागों को दायित्व क्यों नहीं सौपा जाता .डग्गामार वाहनों के खिलाफ अभियान चलाया जाता है तो सभी थानों द्वारा पकड़ की जाती है ,अवैध शराब भट्ठियों के विरुद्ध अभियान चलाया जाता है तो अवैध भट्ठियां पकड़ में आती हैं , नशा पदार्थ के विरुद्ध अभियान चलाया जाता है तो गंजा ,अफीम , चरस की पकड़ होती है .इसी तरह “स्टेटमेंट ” तैयार करने के लिए अलग अलग अभियान चलाये जाते हैं और उन दिनों उन्हें पकड़ा भी जाता है . स्टेटमेंट के सभी कालम पुरे , कारगुजारियां पूरी , काम हो रहा है . इसका मतलब यह होता है कि उन अभियान के दिनों को छोड़ कर बाकी दिनों में कोई अपराध नहीं होता है , फिर ये अवैध शराब पी कर मरने वाले कहाँ से आ जाते हैं ? मरने के बाद अवैध भट्ठियों को पकड़ कर , चलाने वालों को दंड देना न्याय है या ऐसा न हो इसकी व्यवस्था करना न्याय है ? क्या इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार को बढावा नहीं मिल रहा है ? यह भ्रष्टाचारियों के मुख्य आश्रय स्थल , सूचना प्रदाता केंद्र के रूप में विकसित हो रहा है .कुछ ऐसे लोग हैं जिनके यहाँ हाजिरी लगाओ ,एवमस्तु , अभयदान , सूचना मिलती रहेगी , आपका कानून क्या करेगा . ऐसी व्यवस्था किसके हित के लिए है ?
न्याय न्यायालयों द्वारा होता है , जब जाँच ही ठीक ढंग से नहीं होगी तो न्याय कैसे ठीक ढंग का होगा ? जाँच ठीक ढंग से न होने के कारण न्याय ब्यवस्था पर ही सवाल उठ रहे हैं . क्या यह माननीय न्यायालयों की अस्मिता का सवाल नहीं है ?आज भारतीय न्याय व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ न्याय आधारित व्यवस्था है . इस पर दाग लगाने वालों को बर्दास्त करना अपनी अस्मिता एवं शुचिता को खतरे में डालना होगा . जाँच कैसी हो ,कौन करे , किसके द्वारा हो , स्तर क्या हो इसको निर्धारित करने का अधिकार किसको होना चाहिए ? यह सोचने का समय अब आ गया है .यदि आपको खाना ” ५ स्टार” का चाहिए तो सभी सामान और व्यवस्था भी उस स्तर की होनी चाहिए . यह आपको निर्धारित करना है कि आपको खाना किस स्तर का चाहिए .
लोकपाल में जाँच किसके द्वारा हो इस पर मारामारी हो रही है . सभी भौचक होकर लगाये जाने वाले दांव पर वाद -विवाद कर रहे हैं परन्तु यह किसी के द्वारा नहीं सोचा जा रहा है कि किस तरह की जाँच हो , कितने अधिकार देने पर भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगेगा जनता में विश्वास जागेगा . परन्तु उनके द्वारा सोचने का विन्दु यह है कि कम से कम कितना दिया जाय जिससे  काम चल जाय और जय जय कार भी हो कि बना दिया -बना दिया .
न्याय की अवधारणा को मारने से अच्छा है कि जनता को दिवा स्वपन न दिखाया जाय.
न्याय सबके लिए समान होना चाहिए , यह गणतंत्र की सोच तथा न्याय का  प्रथम सोपान है . परन्तु समान न्याय कब होगा ? जब जाँच सभी के लिए समान हो , उसी पर तो न्याय आधारित है . हर न्यायालय , माननीय सर्वोच्च न्यायालय कि तरह तो आदेश नहीं कर सकता . यदि वास्तव में त्वरित, निष्पक्ष ,प्रभावी न्याय जनता को उपलब्ध कराना है तो उसका प्रथम सोपान त्वरित ,निष्पक्ष , एवं प्रभावी जाँच ही होगी तभी न्याय मिल पायेगा जिसका सभी गणतंत्र निवासियों को अधिकार है . बनने वाले लोकपाल में निष्पक्ष जाँच के लिए स्वायत्त जाँच एजेंसी, सभी प्रकार के अधिकार एवं प्रकार से संपन्न करके क्यों न स्थापित कि जाय तथा इसे जाँच का सम्पूर्ण अधिकार क्यों न दिया जाय जो केवल और केवल लोकपाल के प्रति जवाब देह हो .
प्रक्रिया को दुरूह बनाने से अच्छा है कि उसे पारदर्शी , जनहितकारी एवं प्रभावी बनाया जाय ,जिससे जनता का अपने शासक वर्ग पर विश्वास दृढ हो सके .

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