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निशि- तरुणी

bebaak
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बढ़ते संध्या के पग थे
थी रात सरकती जाती /
आमों के झुरमुट से बस
आवाज सनन सी आती/*१//
*/–
झम झम मृदंग था बजता
झींगुर अलापते रागें/
था नहीं होश अब निशि को
इस जग से वह क्या मांगे/*२//
*/–
अपनापन जग में खो कर
वह बनी आज भी रानी /
अब कमीं रही क्या उसको
जो बन जाता है दानी/*३//
*/–
शशि घट लेकर पनघट पर
अमृत भरने को आई /
सोचा जग में ढलका दूँ
करुन्यमयी तरुनाई/*४//
*/–
पनघट से घट को भर कर
अमृत छलकाती भू पर /
निशि बढ़ी चली जाती थी
नभ पर पग धर सत्वर/*५//
*/–
चुपके चुपके वह बढ़ती
चम् चम् तारों से बचती /
सोचा प्रियतम से बच कर
मैं पार करूँ नभ बस्ती/*६//
*/–
पर नुपुर के कलरव ने
कह दिया मुखर हो सबसे /
यह शरमाती निशि रानी
है चली जा रही कबसे/*७//
*/–
पूरब के नभ में प्रिय ने
जब जाना मेरी रानी /
भर भर गुलाल की मुठी
रानी आनन् पर तानी/*८//
*/–
प्रिय के गुलाल की मुठी
जैसे नभ आँगन छूटी/
पश्चिम नभ ने अरुणाई
तरुणी के मुख की लूटी/*९//
*/–
जागरण जंक्शन के सभी ब्लागर बंधुओं को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं —– — —

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