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जागरण जंक्शन :: एक सिंहावलोकन

bebaak
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वर्ष समाप्त होने पर वर्ष में किये गए कार्य का लेखा- जोखा किया जाता है . अलग अलग क्षेत्र में हुए नफा -नुकसान , प्रगति , विकास , अवरोध का आकलन होता है . कमियों से सीख लेकर नई सुबह का स्वागत किया जाता है . यही जीवन है और यही जीवन जीने की कला है .
किसी एक क्षेत्र पर नज़र डालनी हो तो वह आसान होता है परन्तु समग्र का सिंहावलोकन एक दुष्कर एवं दुरूह कार्य है . अलग अलग क्षेत्रों के हो रहे सिंहावलोकन को देख कर उत्कंठा हुई कि क्यों न “अपने घर” जागरण जंक्शन का वर्ष २०११ का सिंहावलोकन किया जाय . यह एक दुरूह कार्य है क्योंकि केवल याददाश्त के भरोसे प्रगति का लेखा -जोखा प्रस्तुत करना काफी कठिन कार्य है फिर भी बड़ों ने कहा है कि कोई कार्य कठिन नहीं होता , बस हौसला होना चाहिए . संजोग देखिये मुझे वह अवसर मिल ही गया .
कुछ जगहों पर लोग ट्रेन के सफर से ज्यादा महत्त्व बस के सफर को देते हैं , इसके बहुत से कारण हो सकते हैं . मेरे जिले के लोग पडोसी जिलों में जाने के लिए बस को प्राथमिकता देते हैं , मैं भी उसका अपवाद नहीं हूँ . बस में तमाम तरह के लोग वार्तालाप करते मिल जायेंगे . यदि आप थोडा उकसाने वाले हों तो फिर क्या कहने , कब चढ़े कब उतरे कुछ पता ही नहीं चलेगा . अभी हाल में ही मुझे बस यात्रा का सौभाग्य मिला था . मैं खिड़की की तरफ बैठा था . मेरे बगल में दो सज्जन बैठे थे . एक दुसरे के बड़े आत्मीय लग रहे थे . घर, आफिस , बच्चों की चर्चा चल रही थी .एक ने कहा छोड़ यार ये सब तो चलता ही रहेगा . आजकल तो जे जे पर तुम्हारी चाँदी ही चाँदी है , बहुत प्रतिक्रिया बटोर रहे हो , आखिर राज़ क्या है ? अभी का लेख तो कोई खास नहीं था . क्या लोंगो ने हेडिंग और नाम देख कर ही तो प्रतिक्रिया नहीं दे दी . अरे नहीं भाई साहब . दुसरे सज्जन ने कहा , बस लेख पब्लिश करने के दो- तीन दिन पहले प्रकाशित होने वाले नए पुराने लेखकों के लेखों पर प्रतिक्रिया देता हूँ और वही सब वापस मिल जाती है . जितना गुड डालोगे उतना ही मीठा होगा . बस यह ध्यान रखिये कि कुछ ब्लागर केवल अच्छे लेखों पर ही प्रतिक्रिया देते हैं , कुछ ब्लागर तो प्रतिक्रिया देते ही नहीं , उन्हें प्रतिक्रिया मत दीजिये , इससे केवल समय का अपव्यय होता है . यहाँ कहते भी हैं कि आप जिसके घर जाईयेगा वही लोग तो आपके घर आयेगें .
दोनों सज्जनों में बात गंभीर होती जा रही थी .एक ने कहा कि यदि देश ,समाज की बात जाननी हो तो उस समय के व्यंग को देखिये , सही हालत का पता लग जायेगा . दुसरे ने कहा , बहुत सही कहा आपने , , अभी हाल में ही एक व्यंग में लिखा था कि कुछ ब्लागर बिना पूरा लेख पढ़े ही केवल शीर्षक देख कर ही कमेन्ट दे देते हैं . क्या खूब लिखा है भाई जान ने , पहले ने कहा .
दुसरे ने कुछ याद करते हुए कहा , अरे भईया , अभी एक सज्जन ने एक लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा था कि जे जे पर ब्लागरों के व्यवहार से क्षुब्ध कुछ अच्छे ब्लागर दूर होते जा रहे हैं . सही तो कहा है ,पहले ने कहा , यदि आपको देखना है तो बेस्ट ब्लागर आफ दि वीक , दैनिक जागरण में छपने वाले ब्लाग , हाल आफ फेम के ब्लाग, टाप ब्लाग को देखिये , पढ़िए . ऐसा नहीं है कि सभी घसीटा मल हैं और जे जे वाले पागल हैं , परन्तु इन्हें प्रतिक्रिया कितनी मिलती है , कितने अधिमुल्यित में आते हैं ,कितने तो पाठक ही नहीं जुटा पाते हैं ? क्या करियेगा यही तो विडम्बना है , दुसरे ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा , सही लेखन हतोत्साहित हो रहा है और उस पर तुर्रा यह कि अच्छे लेख आ नहीं रहे हैं .भला हो जे जे महोदय का जिन्होंने” बेस्ट ब्लागर आफ दि वीक “शुरू किया है . हम मुन्नी बदनाम हुयी , शीला की जवानी , ओ लाला की आलोचना करते हैं , अश्लील का ख़िताब देते हैं , फिर इन्हीं गानों पर शादियों में मस्त होकर डांस करते अघाते नहीं हैं .अश्लीलता फैलाने के हम खुद जिम्मेदार हैं . अच्छी फिल्मे आती हैं तो उन्हें दर्शक नहीं मिलते . हालत यह कि निर्माता दिवालिया . राजकपूर ने जोकर बनाई , नहीं चली , बाबी बनाई, खूब चली , पिछली का भी पैसा वसूल हो गया . हमें तो पानी में भीगती हिरोईन ही चाहिए , फिर दोष किसका ? हम जो देखना चाहते हैं वे दिखा रहे हैं या वे जो दिखाना चाहते हैं हम देख रहे हैं . उन्होंने अपनी बात ख़त्म करने के पहले कहा यही तो जे जे पर भी हो रहा है .
पहला विद्वत्ता में कहाँ कम था , उसने अपनी बात प्रारंभ कि , आपने ठीक कहा भाई जान ,जब आलोचना होती है तो फ़िल्म निर्माता कहता है कि यह कहानी की मांग थी . थ्री इडियट के दृश्य के सम्बन्ध में माना जा सकता है कि यह फ़िल्म की मांग थी , दिखाया भी इस तरह से गया था कि अश्लीलता का भान नहीं हुआ . लोगों को जानकारी मिली परन्तु अब जे जे पर भी न्यूड सीन धड़ल्ले से चल रहे हैं .कभी बिना कपड़ों की बीना तो कभी तरकारी में लेटी नारी दिखाई जा रही है . आखिर ब्लागर कहना क्या चाहते हैं ? क्या शब्द कम पढ़ रहे हैं कहने के लिए जिससे चित्रों का सहारा लिया जा रहा है ? शब्द एवं चित्र दोनों अभिव्यक्ति के माध्यम रहे हैं . शब्द से पहले चित्र ही अभिव्यक्ति का माध्यम हुआ करता था . लगता है कि आदिम युग फिर वापस आ रहा है .
दुसरे ने कहा , अरे भाई साहब , आपको जान कर अफसोस होगा कि “दैनिक जागरण ” में लगातार प्रकाशित होने वाले कई लेखकों को उनके लेखों पर प्रतिक्रिया तक नहीं मिलती और वे लिखते जा रहे हैं , लिखते जा रहे हैं . उनके धैर्य की तारीफ होनी चाहिए . आखिर वे क्यों लिख रहे हैं ?
पहले ने कहा , गुरु ये भाई लोग कमेन्ट लिख कर डाट -डाट(- – – – – ) कर देते हैं , क्या उसे पढ़ने वाला भरेगा या उन्हें शब्द ही नहीं मिलता , वैसे लेखन कला में यह नई विधा है . इसका विकास बहुत जोर शोर से हो रहा है . हमें तो जे जे महोदय का धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने लेखकों को अपनी पहचान विकसित करने में बहुत सहयोग दिया है , बस कविता ,कहानी ,व्यंग की कला को और पुष्पित करने हेतु उन्हें जागरण में उस स्तर का होने पर “सप्तरंग” में प्रकाशित करने के बारे में भी विचार करना चाहिए .
दुसरे ने मुझे पान थूकने के लिए हटाया और फिर जोर से थूंका .मुंह पोछते हुए वे प्रारंभ हुए , इस साल कुछ नए ब्लागर जे जे पर आये और आते ही अधिमुल्यित में छा गए , ज्यादा पठित में भी प्रविष्ट हुए परन्तु ज्यादा चर्चित में प्रवेश नहीं पा पाए . राजनीति पर ज्यादा चर्चा रही , सामाजिक सरोकारों पर भी काफी गहमा गहमी रही ,ज्योतिष , अध्यात्म ,एवं धर्म की अलख जगी , बिना छंद -मात्रा , बहर की कवितायेँ, ग़ज़ल ,शेर काफी सराही गयी और ज्यादा चर्चित में स्थान भी पायीं .कता को कुछ लोगों ने शेर कहा कुछ ने ग़ज़ल कहा , भला हो रुबाई नहीं कहा . गुरुदेव लोग नए कवियों की कविताओं में नुक्श निकालते रहे एवं अपनी बुद्धि के अनुसार समझाते रहे , . वहीँ नए लेखकों ने उन्हें कविता की गहराई बताई क्यों लिखा था यह भी समझाया . व्यंग में नए नए हस्ताक्षर आये , लोग मुस्कराते रहे परन्तु उन लेखों पर प्रतिक्रिया में कंजूसी भी करते रहे .कुछ लेखों पर इस तरह प्रतिक्रिया देते रहे जैसे यह उनकी मजबूरी हो, नहीं दिया तो बड़ी झाड़ पड़ेगी , इतने दिन कहाँ रहे पूछा जायेगा .खेल -कूद का कालम लगभग अधुरा ही रहा .
पहले सज्जन बहुत गंभीर दिख रहे थे . उन्होंने कहना प्रारंभ किया , ज्यादा चर्चित की जगह टाप टेन या टाप फाईव ब्लाग आफ दि वीक और ब्लाग आफ दि मंथ की दो कटेगरी बनानी चाहिए जिससे अच्छे ब्लॉगों को अधिक से अधिक पाठक मिल सकें , अच्छे लेखन को इससे बढ़ावा मिलेगा , अच्छे विचारों का आदान -प्रदान होगा , स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का विकास भी होगा, इससे ले दे भी ख़त्म हो जायेगा .
दुसरे ने भी सुझाव देने में कोताही नहीं की , कहा कि जे जे महोदय को जागरण में प्रकाशित होने वाले लेखों के लिए एक कालम रखना चाहिए जिसे क्लिक करते ही तिथि सहित ब्लाग सामने आ जाये , जिससे मंच पर पाठकों को उत्कृष्ट रचनाओं की त्वरित जानकारी मिल सके .
पहले ने अपनी बात शुरू की , संपादक ,प्रबंधक ,अध्यापक या निर्देशक एक अच्छे डाक्टर कि तरह होते हैं या होना चाहिए . जिस तरह मरीज़ को दवा कड़वी लगे तब भी डाक्टर उसकी मर्जी से दवा नहीं देता , वह रोगी के शरीर के रोग के अनुसार दवा एवं दवा की मात्रा निर्धारित करता है , पथ्य का निर्देश देता है . आज टी वी चैनलों में मारा- मारी मची है ,यह बस आगे और आगे निकलने की चाहत है और समाचारों का स्तर गुणवत्ता से नहीं टी आर पी से आँका जा रहा है . फिल्मों में पहले गीत हुआ करते थे , अब आईटम सांग ने उनकी जगह ले ली है . गानों में अब बोल नहीं हिरोईन की कपड़ा उतारू कला का महत्व हो गया है . साहित्य पढ़ने के लिए लोगों के पास समय नहीं है , केवल ट्रेन में या फिर बस में यात्रा के दौरान ही पढ़ा जा रहा है , सराहा जा रहा है फिर लिखा कैसा जायेगा , वही जो बिक सके , जिस पर तालियाँ बजे, फिर दोष किसका ?
दोनों सज्जनों के वार्तालाप ने मुझे अचंभित कर दिया था . क्या- क्या हो रहा है , किसके लिए हो रहा है . नियमों कानूनों , सुविधाओं में कैसे छेड़ ढूंढा जा रहा है . आप देखें तो यह हर जगह हो रहा है , हर क्षेत्र में हो रहा है . एक बाबा रामदेव या अन्ना हजारे क्या करेंगे . यहाँ तो छेद करने के लिए हजारों खड़े हैं .
दोनों सज्जन कहीं काम करते थे , बीच में उतर गए . उनके बीच में बोलने का मुझे मौका ही नहीं मिला . मैं पछताता रहा . परन्तु खुश भी हुआ कि इन दोनों सज्जनों ने जागरण जंक्शन का पूरा सिंहावलोकन प्रस्तुत कर दिया . इसे कोई ब्लागर कहने की हिम्मत भी नहीं कर सकता था . चूँकि यह औरों के द्वारा ही आकलन किया गया है , अतः लिख रहा हूँ . इसे लेख के रूप में लें या व्यंग के रूप में यह आपकी मर्जी ,आप स्वस्थ रहें प्रशन्नचित रहें यही कामना है .

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