Menu
blogid : 5699 postid : 776

वस्त्र, समाज और पाशविकता (जागरण जंकशन फोरम )

bebaak
bebaak
  • 113 Posts
  • 1683 Comments

मैं छोटा था तो पिताजी एक कहानी सुनाया करते थे . चूँकि यह लेख को आगे बढ़ाने में सहायक होगा अतः लिख रहा हूँ .
बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में बहुत ही दयालु ,परोपकारी ,लोगों के दुःख में दुखी और सुख में प्रशन्नता महसूस करने वाले सज्जन पुरुष रहते थे .लोग- बाग उनका बहुत आदर करते थे . वे भी दूसरों के कष्ट ज्ञात होते ही बिना बुलाये मदद को हाजिर हो जाते थे , भरसक मदद भी करते थे , जो सामर्थ्य से बाहर हो तो औरों का आवाहन भी करते थे .सभी गाँव वाले उनका आदर और सम्मान करते थे जैसे वे उनके परिवार के अंग हों . पूरा गाँव एक परिवार की तरह हंसी -ख़ुशी से रह रहा था . कुछ दिन बीतने के बाद एक राजा ने उस राज्य पर चढ़ाई कर दी तथा राज्य को जीत कर अपना शासन स्थापित कर लिया . विदेशी आक्रान्ता से सभी भयभीत थे . राजा तरह -तरह के जुल्म करने लगा , लोगों को अपमानित करने लगा . लोगों को यह याद दिलाता रहता कि वह विजेता है .
किसी तरह उसे पता चला कि फलां गाँव में बहुत ही धार्मिक , सद्चरित्र , लोकप्रिय , सेवा भाव रखने वाले एक सज्जन रहते हैं . उसने उन्हें पथभ्रष्ट करने की ठान ली . राजा ने उस सत्पुरुष को दरबार में बुलाया और एक बकरी काटने का आदेश दिया . सज्जन पुरुष ने कभी चींटी तक जानबूझ कर नहीं दबाया था , वह भला बकरी कैसे काटता ? उसने अपनी असमर्थता प्रकट की . राजा क्रोधित हुआ और कुछ आदेश देने वाला ही था कि राजा के मंत्री ने कहा, महाराज यदि आप आज्ञा दे तो यही सज्जन पुरुष कहा जाने वाला व्यक्ति एक दिन बकरी काटेगा , बस मुझे कुछ दिन की मोहलत दीजिये . राजा ने मंत्री के कहने पर उसे कुछ दिन की मोहलत दे दी .
मंत्री, सज्जन पुरुष कहे जाने वाले व्यक्ति को अपने आदमियों के साथ एक बगीचे में ले आया .उसे तरह -तरह से डरा कर , धमका कर , लालच देकर भी बकरी काटने हेतु प्रवृत नहीं कर सका . मंत्री ने उस व्यक्ति को एक पेड़ से बंधवा दिया और उसके सामने एक बकरी को ला कर खड़ा कर दिया . सज्जन पुरुष ने बहुत अनुनय -विनय किया कि उसके सामने जीव हत्या न की जाय , वह बर्दाश्त नहीं कर पायेगा . परन्तु मंत्री के आदेश से कसाई ने बकरी का सिर धड से अलग कर दिया . सज्जन पुरुष बंधे -बंधे ही बेहोश हो गया , उसे किसी तरह होश में लाया गया .
दुसरे दिन सज्जन पुरुष को पुनः बगीचे में लाया गया . उसे पेड़ से बांध दिया गया ,. उसके सामने बकरी लायी गई . उसका सिर धड से अलग कर दिया गया . सज्जन पुरुष बेहोश हो गया . इस प्रक्रिया को मंत्री १० दिनों तक दोहराता रहा .अंतिम दिन सज्जन पुरुष बेहोश नहीं हुआ . अगले १० दिनों तक सज्जन पुरुष बांधा नहीं गया और उसके सामने बकरी काटी गयी , वह निश्चल बैठा रहा , कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई . आगे के दिनों में मंत्री ने गडासा सज्जन पुरुष को दिया , उसने बेहिचक बकरी काट दी , उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई . पिताजी ने सीख दी थी कि सदैव अच्छे कामों की आदत डालो .
बड़ा होने पर मैंने महसूस किया कि यह मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करती कहानी है . जब मेरी पहली पोस्टिंग हुई तो मेरे रिश्ते नाते के लोगों ने तमाम शिक्षाएं दी . पिताजी ने इतना ही कहा कि बेटा बाहर जा रहे हो लंगोटी का पक्का और जबान का सच्चा रहना कोई पीठ में धुलभी नहीं लगा पायेगा . आज भी यह मेरे लिए ब्रम्ह वाक्य है .
पश्चिमी देशों में महिलाएं घुटनों के ऊपर का वश्त्र पहनती हैं , बांहें पूरी खुली रहती हैं . वहां का प्रत्येक व्यक्ति उस दृश्य का आदि होता है . इसे विडम्बना ही कहेंगे कि वहां पुरुष पुरे कपडे पहनते हैं .अंदमान निकोबार के जंगलों में एक कबीले की महिलाएं केवल कुछ अंगों को ढके रहती थीं ,बस्तर के जंगलों में अभी कुछ दिनों पहले तक महिलाएं नग्न रहा करती थीं परन्तु इन जगहों पर बलात्कार नहीं होता था या घटनाएँ सुनाई नहीं पड़ती थीं . कथित विकसित देशों के वस्त्र एवं केश विन्यास की नक़ल आज भारतीय समाज में की जा रही है . कुछ “विकसित “लोग ही उस कथित फैशन की नक़ल कर रहे हैं . यह भारतीय समाज के लिए नई बात है. यदि यही बड़े शहरों की महिलाएं उन्हीं वस्त्रों में छोटे शहरों या गांवों में जाएँ तो लोग बाग आँखे फाड़ -फाड़ कर देखेंगे . ऐसा शायद इस लिए होगा कि उस समाज में यह एक -दो ही होंगे . मानसिक रूप से अस्वस्थ लोग फिकरे भी कसेगें . यदि पूरा समाज उसी पहनावे में हो तो फिर वैसी घटना की संभावना न के बराबर ही होगी .
पुराने समय की नायिकाएं कलाई तक की ब्लाउज पहनती थी , समाज भी वैसा ही था . स्लीव लेस ब्लाउज आया , समाज में चला , अब ब्लाउज कहीं खो गया है , परन्तु समाज का क्या करियेगा . आप समाज में नहीं घर में पहन कर घूमिये कोई मना नहीं करेगा . केवल अंग वस्त्र पहन कर घूमिये और कहिये कि समाज बिगड़ गया है तो यह कहाँ का इंसाफ है !
वस्त्र केवल वस्त्र ही नहीं होते .वे केवल जाड़ा ,गर्मी , बरसात रोकने का माध्यम भर नहीं है . भगवान द्वारा प्रदत्त अंग को शालीनता पूर्वक ढकने का माध्यम भी हैं .बिकनी पहन कर शहर में घूमना क्या उचित है ? कहा जा सकता है कि यह फैशन नहीं है .फैशन कौन बनाता है ? फैशन किसके लिए है ? यह भी तो शरीर को, व्यक्ति को सुन्दर बनाने का एक माध्यम है .
प्रत्येक जीव के शरीर की संरचना अलग -अलग होती है . उसकी आवश्यकता भी अलग -अलग होती है . मौसम को बर्दाश्त करने की क्षमता भी अलग -अलग होती है . अतः वस्त्र भी अलग -अलग होने चाहिए . शयन कक्ष में कपड़ों की बात नहीं होती उसमे दरवाजा होता है जो बंद किया जा सकता है . स्वीमिंग पुल में नहा रही औरत के कपड़ों की बात नहीं होती क्योंकि सबके सामने नहाने के समय पहनना एक आवश्यकता है .
सैंडो गंजी पहने कितने पुरुषों को आपने बाज़ारों में घुमते देखा है , गरीबों को छोड़ कर . सलमान खान की शर्ट उतारू कला को यदि छोड़ दिया जाय तो समाज में ऐसे कितने पुरुष हैं जो शर्ट उतार कर बाज़ारों में निर्द्वंद घूम सकते हैं . क्या पुरुषों ने अपने लिए कोई ड्रेस कोड निर्धारित किया है या समाज या सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है ? अब महिलाओं को ही यह स्वयं निर्धारित करना होगा कि ” शीला की जवानी “के ड्रेस में बाज़ार में घुमे या बेड रूम में . आप जिस कपडे में बाहर जा रही हैं यदि उसी तरह के कपडे अपनी छोटी बहन या बेटी को भी पहना कर साथ जाना चाहे तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए , यदि बहन, बेटी के कपडे देख कर आपको शर्म महसूस हो रही हो तो न पहनना ही उचित होगा .
फिल्मों में डायरेक्टर , आगे के दो बटन खोले , गले में लाल रुमाल बांधे, सिगरेट पीते व्यक्ति की कल्पना शोहदे के गेट अप के लिए करता आया है ,साधू के चरित्र के लिए , रुद्राक्ष की माला , गेरुआ वस्त्र धारी , तिलक लगाये व्यक्ति की कल्पना करता था , वेश्या के लिए मचलती ,इठलाती , कामुक इशारे करती बदन दिखलाती चरित्र की कल्पना करता था . इनका कोई ड्रेस कोड किसी कोर्ट द्वारा या किसी संविधान द्वारा निर्धारित नहीं था . व्यक्ति अपनी अभिरुचि , आवश्यकता ,स्थान , परिस्थिति , मौसम के हिसाब से वस्त्र पहनता है . इसका कोई कोड निर्धारित करना भी उचित नहीं होगा . बस इकाई को समूह का ध्यान रखना होगा और समाज को भी इकाई का ध्यान रखना होगा . कहीं ऐसा न हो कि समाज उसे पूरा का पूरा ढँक दे और आग अन्दर ही अन्दर सुलगती रहे , जैसा पाकिस्तान में हो रहा है , जहाँ विश्व में सबसे ज्यादा पोर्न साईट देखी जा रही है और इस कारण का विशेषज्ञों के पास , धर्म गुरुओं के पास कोई जबाब नहीं है .
पागल तो हर जगह पाए जाते हैं , जब ज्यादा हो जाये तो उसे सामाजिक विकृति कहते हैं .इसके लिए वे खुद ही नहीं बल्कि समाज एवं माता -पिता भी जिम्मेदार हैं , इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता . उन्हें सुधारने का बस एक ही विकल्प है , पागलखाना या जेल .

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply