bebaak
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गली कुचे दुबक गए
ढँक कर निज नाम /
सोय गई दुल्हन सी शाम/*
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अधरों के बीच जमा करके नव रंग
पल -पल में छोड़ रही नया -नया संग /
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नाचती गली -गली
भागती कहाँ चली
बंद हुई कमरे में जाने किस काम /
सोय गई दुल्हन सी शाम/*
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धुल सने आँचल में बिखराए छंद
छिटक रही आँगन में अलसाईगंध /
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अठखेली बीच पली
भंवरों सी छली- बली
बिखर गया छुट कर हाथों का जाम /
सोय गई दुल्हन सी शाम/*
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बालों में उलझ गई आमों की मंजरी
झींगुर की तालों पर छेड़ रही बंसरी /
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ताल -ताल पर ढली
अवसान बीच चली
कोई इन्हें रोको हाथों को थाम /
सोय गई दुल्हन सी शाम/*
*/–
लुटती पतंग चली डोरी के संग
तारों में ढँक कर चोरी से अंग
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नित बनी नई कली
नीद में हमें छली
अधूरे गीत छोड़ कर लो न पयाम /
सोय गई दुल्हन सी शाम/*
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