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विश्व का सबसे बड़ा मेला या झमेला !!!

bebaak
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समाज को चलाने के लिए कुछ नियम -कायदे होते हैं , कुछ सामाजिक वर्जनाये होती हैं , कुछ राजकीय कानून होते हैं . इन सभी के सहयोग से समाज प्रगति करता है .समाज के नियम ,कायदे, कानून एवं वर्जनाये समय, स्थान ,परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती हैं . इन्हें बनाने वाले कोई “लोग ” नहीं होते .ये धीरे- धीरे परंपरा ,व्यवहार से होते -होते रूढी में परिवर्तित हो जाती हैं , फिर इनमे बदलाव की जद्दोजहद निरंतर चलती रहती है . समाज को एक जुट रखने के लिए पुराने समय में राजा होता था ,जिससे राज्य की कल्पना साकार हुई , मंत्री परिषद् का गठन हुआ , जिसके सहयोग के लिए कानून बनाया गया . वर्त्तमान समय में शासन चलाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा चुनाव होता है . इनके लिए शिक्षा का एक निश्चित मानदंड होता है , उम्र की एक निर्धारित सीमा होती है .चुने हुए लोग विभिन्न पदों पर राज्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं .इनके कार्यों को देखने एवं लोक हित के नियम- कानून बनाने के लिए जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है . इस प्रतिनिधि की शिक्षा एवं उम्र की कोई सीमा नहीं होती , कोई परीक्षा नहीं होती , बस जिसे जनता का सबसे अधिक मत मिले वही विजेता , वही जनता का असली प्रतिनिधि , वही जनता का वास्तविक हितैषी , दुःख दर्द का स्वयम्भू भागीदार , बाकि सब बेकार .
सब प्रतिनिधि मिल कर कानून बनाते हैं . ये कैसे चुने जांय, इन्हें क्या -क्या सुख सुविधाएँ मिलनी चाहिए , वेतन भत्ता क्या -क्या होना चाहिए इसका कानून ये खुद बनाते हैं इनके ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं होता है .ये चुने गए , उसके बाद पाँच वर्ष के लिए , मैं जो चाहे ये करूँ , मैं जो चाहे वो करूँ मेरी मर्जी की तर्ज पर गाना गाते हैं .जब जनता के हित की बात होती है तो उसमे तमाम वाद -विवाद , माथा -पच्ची , सवाल -जबाब सभी कुछ शामिल हो जाता है . चलते -चलते वो बनता कानून भी “चलता ” हो जाता है .
आज भारतीय प्रजातंत्र की स्थिति लड़की के निरीह बाप की तरह हो गई है . जब वर (प्रतिनिधि )चुनने का समय आता है तो सभी बिहार के एक खास स्थान के दुल्हे की तरह सज़- धज कर बैठ जाते हैं .कुछ चारण इनकी एवम इनके वंश (पार्टी ) की शौर्य गाथा गाते हैं . इनके कुल, खानदान ,धन -संपत्ति , कार्य -व्यवहार आचरण को देखते हुए लड़की का पिता (मतदाता )एक वर का चुनाव करता है . परन्तु यहाँ पर ये माफिया , हत्यारोपी , चोर , करापवंचक ,लबार धन की गंगा बहा कर , प्रलोभन देकर, धमकाकर गरीब जनता के पिता (मतदाता ) की आँखों में धुल झोंक कर चुन लिए जाते हैं . जब ये पाँच साल तक अपना असली रूप दिखाते हैं तो लड़की का पिता ( मतदाता )ज़ार -ज़ार रोता है , तड़पता है ,अपना दुःख किससे कहे ,चुनाव तो उसी ने किया था . वह अन्दर ही अन्दर घुटता है और जब लड़की (जनता ) दुःख से आजिज़ आकर विद्रोह करती है , अपनी मांग रखती है तो उसे तमाम तरह की आचरण से सम्बंधित शिक्षाएं दी जाती है , समाज की ऊँच- नीच समझाई जाती है , घर -परिवार (देश ) की दुहाई दी जाती है , पाँच साल साथ निभाने का आदर्श समझाया जाता है .चलो यह पांच साल किसी तरह निभा लो अगली बार अच्छा चुनुँगा ,फिर ऐसी गलती नहीं होगी .किसी के बहकावे में नहीं आऊंगा ,अगली बार ठोंक बजा कर ,देख भाल कर , अच्छे से अच्छा वर ( प्रत्याशी ), जाती -धर्म से दूर ,केवल गुण के आधार पर चुनुगा .फिर अगली बार की प्रतीक्षा में वह अगली बार कभी नहीं आता .अब बेटियां ( जनता ) अपने शराबी , कबाबी , धनलोलुप ,डरपोक ,जातिवादी , सम्प्रदायवादी पिता ( मतदाता ) के किये जा रहे कार्यों से आजिज़ आ चुकी है , धीरे -धीरे विरोध करना सीख रही है .डर है कि कहीं ये विश्व के सबसे बड़े मेले को झमेला न साबित कर दे , कहीं ये सिरे से इस आदर्श चुनाव प्रक्रिया को ही नकार न दे .
किसी न्यायलय के फैसले के विरुद्ध भारतीय संविधान के नियमो के अंतर्गत अपील की जा सकती है , गलत लडके से यदि शादी हो गई तो तलाक लिया जा सकता है , परन्तु मतदाता ने यदि अपना मत एक बार व्यक्त कर दिया तो उसको बदलने का उसे अधिकार नहीं है . वह पांच साल तक उस प्रत्याशी की जिसे उसने माननीय बना दिया है, की चरण बंदना करने के लिए अभिशप्त है . गलती इन्सान से ही होती है . इसका प्रयोग मुहावरे के रूप में किया जाता है . यदि यह सत्य है तो उसे सुधारने का मौका मिलना ही चाहिए , यही नैसर्गिक न्याय है .यदि वह प्रत्याशियों में से किसी को न चुनना चाहे तो उसे इसका भी अधिकार मिलना चाहिए . , किसी को भी चुनने की बाध्यता नहीं होनी चाहिए और यदि प्रत्याशी माननीय बनने के बाद जनता के हित के कार्य न कर केवल घोटालों में ही मशगुल रहे तो उसे वापस बुलाने का भी अधिकार होना चाहिए . इसी से समाज का विकास संभव है और माननीयों द्वारा हो रहे घोटालों पर अंकुश लग सकता है .
भ्रष्टाचार आज चरम पर है . सभी इसे दिल से स्वीकारते भी हैं . आज समाज इस मुद्दे पर पहले से ज्यादा जागरुक हुआ है , विरोध कर रहा है . बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे की मुहीम ने इस आग को एक दिशा दी है. सभी को एक कर्मठ , जागरुक , जनता के सुख -दुःख में भागी प्रत्याशी की जरुरत महसूस हो रही है परन्तु देखने की बात यह होगी कि ठप्पा मारते समय यह जागरूकता कितनी जागरुक रहती है . कहीं जाति -पांति , बाहूबल धनबल , धर्म- दारु में तिरोहित तो नहीं हो जाती है . सभी पिताओं ( मतदाताओं )को चिंगारी के आग बनने से पहले ही अपने किये जाने वाले कृत्य के सम्बन्ध में गंभीरता पूर्वक सोचना होगा , यही समय की मांग भी है .

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