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क्या इस्लाम में इसकी इजाजत है ???

bebaak
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दो व्यक्तियों ,दो गांवों ,दो समूहों,दो जिलों ,दो राष्ट्रों या दो समुदायों के बीच यदि विचारों में मतभेद का संकट चल रहा हो ,धन संपत्ति का विवाद चल रहा हो तो दोनों के साथ साथ रहने की पहली और आखिरी शर्त है कि विवाद के बिंदु को पहचाना जाय / केवल अपने को श्रेष्ठ मानने की परंपरा को समाप्त किया जाय / बातचीत बराबर के स्तर पर एक दुसरे को सम्मान देते हुए ही संभव है / विवादित बिंदु को पहचानने के बाद उसके निराकरण का , निवारण का भरपूर प्रयास किया जाय ,जब तक विवाद के बिंदु जिन्दा रहेंगे दोनों के बीच चाहे वे किसी भी रूप में हो , समझोता संभव नहीं है , सह अस्तित्व पूर्ण निरापद नहीं हो सकता / एक साथ रहने पर भी टकराव होता रहेगा / यही हाल भारतीय समाज के दो समुदायों का है /
प्राचीन काल से भारतीय समाज में बहुत से मत मतान्तर के लोग रहते हैं / उनके अलग अलग विचार हैं ,अलग अलग कर्मकांड हैं , परन्तु उनमें कभी टकराव नहीं हुआ / हाँ शास्त्रार्थ होता रहा परन्तु अपने विचार जबरदस्ती थोपने का प्रयास नहीं हुआ / जो नास्तिक हैं , एकेश्वर वादी हैं मूर्ति पूजा के विरोधी हैं उन्होंने मूर्ति पूजकों की मूर्तियों को कभी खंडित नहीं किया , मंदिरों को कभी दूषित नहीं किया , गिराया नहीं / दुर्गा पूजा के जुलूसों पर पथराव नहीं किया / अब यह आम होता जा रहा है / इससे कैसे किसी का धर्म नष्ट हो जा रहा है ? क्या धर्म इतना कमजोर होता है / इसको रोकने का हर संभव प्रयास होना चाहिए ,केवल शरारती तत्वों की हरकत कह कर मुंह मोड़ने से शांति संभव नहीं है ऐसे तत्वों को खोज खोज कर बिल से बाहर निकालने का प्रयास दोनों समुदायों को मिल कर करना होगा / कहावत है कि ” सिधरी चाल करे रोहू के सर बिसाय “/
हिन्दुओं के मन में यह सवाल उठता है कि क्या यह सत्य नहीं है कि मध्य काल में हिन्दुओं की औरतों को लूट कर जबरदस्ती विधर्मी बनाया गया /क्या यह सत्य नहीं है कि वीर हिन्दुओं को जिन्होंने देश रक्षा में अपनी जान दे दी , उनकी बहु बेटियों का अपहरण करके दुसरे धर्म में दीक्षित किया गया ? यह उनके लिए गर्व की बात होगी कि उनकी परदादी , परनानी या दादी- नानी या पूर्वज औरतें , जिनकी रक्षा करते उनके परनाना , परदादा शहीद हुए थे , लुटी गयी थीं , उन्हें बेइज्जत किया गया था ,” वे ” आज उन्हीं लुटी हुयी औरतों की संतान हैं / धर्म बदलने से माँ बाप नहीं बदल जाते / मध्य कालीन इतिहास पढ़ते हुए , देखते हुए , सुनते हुए आत्मा क्षोभ से भर उठती है , क्या उनकी नहीं जिनसे वे पैदा हुए हैं ?
उन औरतों के आंसुओं का हिसाब कौन देगा ?आज नहीं तो कल जमाना हमसे वसूल लेगा , यही प्रकृति का नियम है / क्या हमें गर्व है कि हमारे घर कि औरतों को विदेशियों ने लुटा था ? क्या अब हम उन्हीं विदेशियों के पद चिन्हों पर चलेंगे या अपने आकाओं को दिखाने के लिए वही कर्म करेंगे , लव जिहाद के नाम पर / यदि मध्य कालीन भारत में हिन्दुओं की औरतों को लूटने की घटनाएँ न हुयी हो तो ये सीरियल , फिल्में ,जिनमे यह सब दिखाया जाता है , साहित्य, इतिहास जिसमें यह सब उल्लिखित है दिखाना ,लिखना ,सुनाना बंद होना चाहिए / दुसरे समुदाय को भी यह समझना चाहिए कि उनके कुछ लोग उन्हीं सताई हुई , लुटी हुई ,चीत्कार करती हुई औरतों की ही संतान हैं /
आप खुद सोचें , यदि आपके दादाजी के पूर्वज बहुत सशक्त थे और उन्होंने बहुत संपत्ति बनाई , जिसका उपयोग आपके परिवारी जन करते आ रहे हों , संयोग वश आपके पिताजी की स्थिति ख़राब हो गयी हो , पड़ोसियों ने जमीन, जायदाद , संपत्ति पर कब्ज़ा कर लिया हो , अब आज आप धन बल से सक्षम हो गए हो तो क्या उसको वापस पाने की तमन्ना आपको नहीं होगी ? भाई साहेब जब जब आप उसको देखेंगे दिल में एक कसक सी उठेगी , भुजाएं फडकेगी यदि आपका ज़मीर जिंदा हो तो ! आप सभी सहमत होंगे कि क्रोध, दुःख, पश्चाताप ,क्षोभ ,इर्ष्या,इत्यादि मानवीय गुण हैं और यह सभी में थोडा कम, थोडा अधिक होता भी है / यदि हिन्दुओं के मंदिर तोड़े गए है तो उस गलती को स्वीकार करने में हर्ज ही क्या है ? यह तो इतिहास का सत्य है / हिन्दू जिसे अपना कह रहें हैं उसकी जाँच करा ली जाय , जांचोपरांत यदि वे हिन्दुओं के मंदिर थे तो गलती का परिमार्जन करते हुए उसे वापस करना ही श्रेयस्कर होगा / उसे विजेता” ट्राफी ” के रूप में रखना न तो धार्मिक रूप से उचित है, जैसा इस्लाम में भी मुमानियत है, नहीं सामाजिक रूप से ही वैध है / यह वैमनस्यता कीएक कड़ी है /
इसमे हिन्दू भी कम जिम्मेदार नहीं हैं / यहाँ आने जाने पर कोई बंदिश नहीं है / जो चला गया वो चला गया , जो आ गया वो आ गया / यहाँ बाँहे फैला कर स्वागत करने का चलन नहीं है , जो होना चाहिए था / सादर आमंत्रित करना चाहिए था ,जिनका जबरदस्ती धर्मान्तरण किया गया ,जिन महिलाओं की जबरदस्ती इज्जत लुटी गयी उन्हें सम्मान के साथ वापस लेना चाहिए था / यह एक ऐतिहासिक भूल थी / इसका निराकरण सभी धर्माचार्यों को मिल कर करना चाहिए था जो नहीं किया गया / भूलों से सीख लेकर ही इन्सान आगे बढ़ता है / दोनों समुदायों को मिल कर उन निरीह निष्कलंक अबलाओं पर हुए अत्याचार को याद करना चाहिए एवं दुःख मनाना चाहिए .
प्रत्येक वर्ष यज़ीद के अत्याचार को याद किया जाता है और एक समुदाय के लोग आंसू बहाते हैं , यह वाकया ही ऐसा है . क्या जौहर में जलती हुई औरतों को भी कभी याद किया गया है , आखिर वे भी तो इन्सान ही थीं .
एक पार्टी के नेता कह रहें हैं कि उनकी पार्टी में ही ब्राम्हणों का सम्मान सुरक्षित है , दूसरी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि “क”पार्टी का मुस्लिम प्रेम मात्र छलावा है . एक धार्मिक नेता मुसलमानों को एक खास पार्टी को वोट देने का निर्देश दे रहे हैं . आखिर यह हो क्या रहा है ? खुले आम समाज को जातियों , संप्रदायों में बांटने का षडयंत्र चल रहा है . कोई इन्सान के विकास की बात , समाज के विकास की बात नहीं कर रहा है . जनता के हित का यह चुनाव एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट की तरह दिल का इलाज करते करते कहीं गुर्दा न ख़राब कर दे , कहीं समाज ही विखंडित न हो जाय .
दूसरों को सांप्रदायिक एवं अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले “नेताजी “लोग आज कथित धर्म गुरुओं के तलवे चाट रहे हैं और अपने को धर्म निरपेक्षता का मसीहा कहते नहीं अघाते हैं . क्या जनता अब पढ़ी -लिखी भेंड हो गई है जो एक दुसरे के पीछे चलती हुई कुंवे में गिरने को तैयार है . जाति का नाम लेकर वोट मांगना वर्जित है तो क्या संप्रदाय का नाम लेकर वोट मांगना जायज़ है , इस पर चुनाव आयोग क्या करता है यह देखने की बात होगी .
भाई से बड़ा दोस्त और भाई से बड़ा दुश्मन कोई नहीं हो सकता है . दोनों समुदाय के लोग हैं तो एक ही माँ -बाप की संतान . मान्यताएं , विश्वास अलग अलग हो सकते हैं बांटने वाले केवल अपना उल्लू सीधा करने के लिए एक दुसरे के हिमायती बने घूम रहे हैं . बस इनकी नियत पहचानने और सतर्क रहने की जरुरत है .
किसी समुदाय के कुछ आततायियों के कर्म को पुरे समूह का कर्म मानना भी उचित नहीं होगा . जो कुछ भी हुआ है वह पूर्व में हुआ है अतः आज के लोगों को दोषी मानना भी उचित नहीं होगा ,परन्तु आज के लोगों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे पूर्व के अत्याचारों को हुआ अत्याचार करार दें . जो गलत हुआ है उसे सभ्य जनों को बिना किसी दबाव के गलत कहना ही होगा . गलती तो गलती ही है, उसे स्वीकारने से कोई छोटा नहीं हो जायेगा वरन उसका कद कई गुना बढ़ जायेगा . दोनों समुदायों में पहले की तुलना में आज एकता एवं संवाद की ज्यादा जरूरत है . जयचंदों की फौज बांटने को तैयार बैठी है , परन्तु वे यह भूल गए हैं कि जब देश ही नहीं रहेगा तो उनका अस्तित्व कहाँ रहेगा !
विषय बहुत संवेदन शील है . लोग -बाग इस पर बात करने से कतराते हैं .एक देश , एक राज्य ,एक जिला ,एक तहसील ,एक मोहल्ले में रहते हुए भी हम अलग अलग हैं . यह केवल और केवल विश्वास के संकट के कारण हुआ है .शुतुरमुर्ग की तरह बालू में मुंह छुपा लेने से , समस्या से मुंह मोड़ लेने से , समस्या समाप्त नहीं हो जाएगी . दोनों समुदाय के बुद्धिजीवियों को एक मंच पर बैठ कर आपसी समझ विकसित करने की जरुरत है , जिससे आज” नेताजी ” जैसे लोग फिर से बाँट न सकें . जाति ,धर्म ,संप्रदाय ,अगड़ा -पिछड़ा से ऊपर उठ कर आज की तारीख में ” अपना ” प्रतिनिधि चुनने का समय आ गया है , इसी में सबकी भलाई है .

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