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आखिर ,हम कब सुधरेंगे !!!

bebaak
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मैं एक शादी में गया था , वापसी के समय “कुछ विद्वान् “लोगों के साथ एक ही गाड़ी में वापस आ रहा था .उसमे से एक सज्जन ने पूछा , गुरु आपके तरफ चुनाव का क्या हाल है ? दुसरे ने कहा कि हमारी तरफ तो “य” का जोर है . पहले ने पूछा , कांहे भईया आपकी तरफ पिछली बार तो “अ” पार्टी के “ज” का जोर था . दुसरे ने कहा कि यहाँ पर “ब ” पार्टी ने “ज” जाति का प्रत्याशी उतार दिया है ,इसलिए “य” जाति के लोग उसे वोट नहीं देंगे . दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है . एक जाति के लोग जिस पार्टी को वोट देंगे दूसरी जाति के लोग उस पार्टी को वोट नहीं देंगे . यहाँ घोषणा पत्र काम नहीं करता . मैं भौचक होकर सुन रहा था . आज हम ब्लागर शुचिता की बात कर रहे हैं , लिखा भी जा रहा है , पढ़ा भी जा रहा है . मेरी जानकारी में मंच का कोई भी ब्लागर संप्रदाय वाद , जाति वाद का हिमायती नहीं है , परन्तु जमीनी हकीकत का क्या करियेगा ? हर किसी के चहरे पर स्याही फैल रही है . चेहरा पहचान में ही नहीं आ रहा है . कोई फतवा करने को तैयार बैठा है , कोई जाति के इज्जत का सवाल उठा रहा है . चारो तरफ उहापोह की स्थिति है .हिलते पानी में पड़े सिक्के की तरह , कभी यह चवन्नी नज़र आ रहा है तो कभी रूपया नज़र आ रहा है . मृग मरीचिका की तरह हम अच्छे प्रशासन की आस में हम भटक रहे हैं .
राजनैतिक पार्टियों के द्वारा बहुत से चुनावी वायदे किये गए हैं और लगातार किये जा रहे हैं ,परन्तु इसके लिए धन कहाँ से आएगा , इसकी व्यवस्था के बारे में सभी मौन हैं . चुनाव में जनता भी इस कदर मौन है कि कोई भी आकलन करना क्रिकेट की भविष्य वाणी की तरह हो सकता है . एकाध राज्यों को छोड़ कर सभी राज्यों में त्रिशंकु सरकार बनने के ही आसार नज़र आ रहे हैं . जो भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं .
कार में हुए वार्तालाप में बाबा रामदेव और अन्ना हजारे गायब थे . दूर दूर तक कोई जिक्र नहीं था . होता भी कैसे ? भारतीय जनमानस की याददाश्त बहुत कमजोर है . वह बहुत जल्दी उबलते दूध की तरह गर्म हो जाती है , गर्मी ख़त्म -झाग ख़त्म . यदि आपको उबलता दूध चाहिए तो फिर गर्म करिए . केवल कुछ पढ़े लिखे लोग जो पहले वोट डालने ही नहीं जाते थे , यदि अब वे जाय , तथा वे नौजवान जो पहली बार वोट डालने जा रहे हैं , उन पर ही बाबा रामदेव और अन्ना हजारे का कुछ प्रभाव हो सकता है . दलित कही जाने वाली जातियों में से कुछ राजकीय नियमों का भरपूर लाभ उठा रही हैं . कुछ जातियां अब भी पहले की स्थिति में ही हैं , उनमे असंतोष पनप रहा है , जोभी उन पर डोरे डाल सकेगा तो वह वोट दरक सकता है .
समाचार पत्र तो समाचार पत्र अब अपने को देश का अग्रणी न्यूज़ चैनल कहने वाले न्यूज़ चैनलों पर भी जातियों का आंकड़ा प्रदर्शित किया जा रहा है . आजकल चुनाव का सभी विश्लेषण जातियों , सम्प्रदायों की रुझानों को देखते हुए आ रहा है . नीला , हरा , जोगिया , लाल सभी रंग हाथी ,हाथ , कमल ,साईकिल पर चढ़े नज़र आ रहे हैं . मानवता का रंग कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है . ये जनता का भला करने निकले लोगों की जुबान पर विकास का गीत तो है परन्तु योजना ,प्रणाली एवं गीत की गति का अभाव दिख रहा है . पानी में दबी गन्दगी की तरह चुनावी विभत्सता सामने आ रही है . चुनाव आयोग एवं बुद्धिजीवियों को इसे साफ करने के लिए एक मंच पर आगे आना चाहिए .

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