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प्यार :जरा हट के

bebaak
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मैं भाभी के मायके एक शादी में गया था . “नेवता “का सामान लेकर पहुँचते- पहुँचते बड़ी देर हो गई थी , काफी आंधी -अंधड़ , बूंदा- बांदी हुई थी . देर से पहुँचने पर भाभी की शान में शायद कुछ कमी रह गई थी ,वे गुस्सा होकर अन्दर चली गईं , फिर खुद ही तौलिया लेकर आईं और ममता भरे हाथों से सिर पोंछने लगीं . मैं चहक -चहक कर लाया सामान उन्हें दिखाने लगा . नाश्ता -पानी के बाद मुझे भी शादी में बैठा दिया गया .
आज के ज़माने के हिसाब से मैं उस समय का पोंगा पंडित था . केवल पढ़ना , परीक्षा देना , तक ही मेरा ज्ञान सीमित रह गया था .लड़कियों के साथ से जुडी बुखार आ जाता था .बड़ा होने पर प्रतियोगी परीक्षाओं का चस्का लग गया था . पहली बार में ही नौकरी लग गयी थी . उसके कुछ दिन बाद ही यह शादी पड़ी थी . गुलाबी मौसम था . धोती -कुर्ता पर कश्मीरी शाल ओढ़े , मैं पीढ़े पर अर्ध निद्रित अवस्था में बैठा था . सामने महिलाओं -लड़कियों का झुण्ड विवाह गीत गाने में मगन था . भाभी कभी कभी मेरी तरफ उंगली उठा कर लोंगो से बात करती थी . उस समय मेरी दशा देखने लायक हो जाती थी . कभी -कभी सामने बैठी लड़कियों में से एक पर मेरी निगाह टिक जाती थी . सभी लड़कियों से वह शांत ,सौम्य और कुछ “अलग हट के” थी . कैसी “अलग हट के “यह तो बता नहीं पाउँगा , बस सबसे “अलग हट के” थी .सुन्दर तो वहां बहुत सी थी पर वह कुछ” अलग हट के” सुन्दर थी , या यह मेरी आँखों का वहम था .मैं रात भर सोता जागता शादी के मंडप में बैठा रहा . दुल्हा के कोहबर में जाने के बाद मैं भी एक गद्दे पर चादर ओढ़ कर सो गया .
सुबह आवाजों के शोर से उठ बैठा , नींद पूरी न होने के कारण आलस्य था और बदन टूट रहा था . सभी लोग बिदाई कार्यक्रम में मशगूल थे .रात को ठीक से खा भी नहीं पाया था , अब भूख लगने लगी थी . मैं भाभी को खोजते -खोजते भंडारे तक पहुँच गया . पीछे से आवाज आई ” क्या भूख लगी है “, मैंने चौंक कर देखा , वही “कुछ अलग हट के” वाली , कछान मारे , हाथ में खाली परात लिए खड़ी थी . मेरे हलक से आवाज़ नहीं फूट रही थी .मैंने घबराहट में हाँ में सिर हिला दिया , वह हंस पड़ी . दूसरी तरफ से भाभी आ गईं .मेरी जान में जान आई .
बरात बिदाई के बाद मैं भी भाभी के पैर छू कर जाने को तैयार हुआ तो भाभी ने पूछा , नीले सूट वाली कैसी है ? पहले तो मैं समझ नहीं पाया , कह दिया, अच्छी है , बहुत कामकाजी है ,मेहनती है फिर अर्थ समझते ही शर्मा गया . मैंने” जरा हट के” वाली को शादी में हर जगह देखा था . किसी को भी कोई सामान चाहिए बस ———.और सामान हाजिर .मैं घर चला आया और फिर नौकरी पर चला गया .
संयोग देखिये मेरी पोस्टिंग उसी “जरा हट के” वाली के शहर में हो गई , परन्तु मुझे इसका ज्ञान नहीं था . शादी के लिए काफी प्रस्ताव आ रहे थे . तमाम फोटो आई , भाभी ने चोरी -चोरी कुछ फोटो दिखाया भी .मुझे उनमे से कोई पसंद नहीं आई , या फिर मुझे देखने की तमीज़ ही नहीं थी , या अंतर्मन में कोई दूसरी मूरत थी जो अब तक सामने नहीं आई थी .एक दिन भाभी मेरे यहाँ आईं . कई फोटो भाभी ने ड्रेसिंग टेबल पर रख दिया और इधर -उधर की बात कर फोटो देखने की ताकीद कर दुसरे कमरे में सोने चली गईं . रात की नीरवता में मैंने फोटुओं को पलटना शुरू किया . उनमे से एक फोटो वही ” जरा हट के “वाली की थी . मैं स्तब्ध रह गया बड़ी देर तक अपलक निहारता बैठा रहा . रजाई में घुसे- घुसे ही चार पंक्तियाँ लिख मारी . कब नींद आ गई ,पता ही नहीं चला . सुबह देर से उठा ,फोटुओं को ड्रेसिंग टेबल पर रख कर, कागज़ का टुकड़ा जिस पर कविता लिखी थी ,गद्दे के नीचे दबा दिया . मैं समय से खाना खाकर आफिस चला गया .
शाम को घर लौटने पर पाया कि सभी सामान करीने से लगा हुआ है . एक बैचलर का कमरा अब घर दिखाई पड़ रहा था . भाभी का मूड कुछ बदला- बदला नज़र आ रहा था , जिन्होंने आज तक कभी मजाक नहीं किया था आज वे ठिठोली के मूड में थीं . दुसरे दिन भाभी घर चली गईं . मैंने देखा वह कागज़ का टुकड़ा, जिस पर कविता लिखी थी , वहीँ गद्दे के नीचे पड़ा था .
छुट्टी में मैं घर गया वहां पता चला , मेरी शादी तय हो गई है . मैं अवाक् रह गया . भाभी मज़े ले -ले कर छोटी से छोटी बात लोगों को सुना रहीं थीं . मेरी शादी उसी ” जरा हट के वाली “से तय हुई थी .मुझसे पूछा गया तो मैंने कह दिया जैसा आप लोग उचित समझें .
शादी के बाद मैंने वे चार पंक्तियाँ , उसी कागज़ पर पेन्सिल से लिखी हुई , पत्नी को उपहार में दिया था . समय बीतता रहा , बच्चे बड़े हो गए . मेरा भतीजा एक लड़की से प्यार करता था और उससे शादी करना चाहता था . बात बात में ही उसने कह दिया , चाचा ने भी तो अपनी पसंद की लड़की से शादी की है ,तो मुझ पर ही बंदिश क्यों ? मैं सुन कर अवाक रह गया , जैसे सांप सूंघ गया हो . बात सार्वजनिक हो गई थी कि शादी के पहले मैं ” जरा हट के ” लिए कवितायेँ लिखता था . भाभी ने स्वीकार किया कि सफाई के दौरान गद्दे के नीचे रखी कविता उन्होंने पढ़ी थी और पिताजी से पैरवी करके मेरी शादी तय करवाई थी .एक ही शहर में रहते हुए मैंने कभी मिलने का प्रयास नहीं किया था . बस वही जरा हट के दिखने की बात मन में दबाये रहा . आज सोचता हूँ क्या यही प्यार था ?
उस बसंत के प्यार को इस बसंत में मैं स्वीकार करता हूँ . आज सोचता हूँ ,दो पीढ़ियों के प्यार के व्यवहार में कितना अंतर है .

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