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आप , तूं , तुम

bebaak
bebaak
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जुल्फों की छाँव में
बीती अँधेरी रात को
जब भी मैं
याद करता हूँ ,
काली अँधेरी रात में
जुगनुओं की तरह
वह चेहरा
चमक उठता है .
झुकी झुकी आँखे
बोलता कंगन
सरकता आँचल
और न जाने क्या क्या
याद आ जाता है .
आप से तुम
और तुम से तूं
तक का सफर
केवल मैंने नहीं भोगा,
हर क्षण
हर पल
मेरे कहीं न कहीं
साथ थे
आप ,तूं , तुम .
निश्तब्धता के क्षणों में
भरते घड़े की आवाज़ सी
आकुलता
केवल मैंने नहीं भोगी
जानता हूँ .
रजनी के गेशु में
उषा के सिंदूर को
नदी के दर्पण में
केवल मैंने तो नहीं देखा ,
मेरे कहीं न कहीं साथ थे
आप ,तूं ,तुम .
मैंने भी सोचा था
हर कोई सोचता है
परन्तु
मैंने ऐसा नहीं सोचा था
जैसा
हर कोई सोचता है ,
क्योकि –
मेरे आप
मेरा तुम
सब कुछ
तुम ही तुम हो .

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