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बरसात

bebaak
bebaak
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बादल के पहरे से भाग कर
बैठ गई छिप करके
वृक्षों की फुनगी पर,
देख कर –
उषा के बचपन को ,
उतर पड़ी फुनगी से
खिलखिलाती – चिलचिलाती धुप !
दिन भर घुमती रही
भटकती रही ,
लज्जा को छोड़ कर
हंसती- विहंसती
सरकती रही !
आँचल में मुंह छुपाये
सुन कर सडकों की काना- फूसी ,
फिर भी –
धुप दिन भर मचलती -इठलाती
और संध्या को
वृक्षों में छुपती भाग जाती !
बादल तड़पता रहा
दिन भर दौड़ता भटकता रहा ,
सुन कर धुप की कहानी
उन करयिल के फटे पड़े खेतों से !
फट पड़ी छाती-
रो उठा बादल ,
देख कर बरसात
उन आंसुओं की ,
भाग गई धुप भी
परदे की ओट में !!

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