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मानव- मन ,कामना , धर्म :: कुछ शब्द चित्र

bebaak
bebaak
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मन की भटकन –
डूबते सूरज के समय
बदलते आकाश की तरह
पल- पल बदलती रही ,
लुटती ,सिमटती रही /
मानव मन –
कच्ची मिटटी की तरह
उड़ते बादल के संग
बदलती परछाईं की तरह
भांति भांति के रूप
धरता रहा ,
बदलता रहा /
मानव कामना –
सफर के वृक्षों की तरह
छूटती
छटपटाती मक्खी की तरह
उलझती
मुट्ठी में रेत की तरह
फिसलती
चली जा रही है /
मानव धर्म –
एक दुसरे से टकराते
उलझते ,उलझाते
श्रेष्ठता की कतार में खड़े
मानवता से दूर –
और दूर होते जा रहे हैं /
कबीर ,नानक ,मीरा सूर
गा जो गए ,
जीवन की आपाधापी में
सब कुछ पीछे छूट गया ,
आज सम्प्रदाय
“धर्म”बन गया है ,
और मानवता ?
टूटी माला के मोती की तरह
टुकडे टुकड़ों में बिखर गई है /

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