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अंतिम सत्य ???

bebaak
bebaak
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कहाँ से शुरू करूँ
बस इसी में
उलझा रहा ,
लोग क्या कहेंगे
कहीं कुछ गलत न हो
आत्म प्रताड़ना
आत्म प्रवंचना
आत्म संकोच से –
ग्रसित मन
भट्ठी की तरह दहकता रहा /
कहीं एक पल –
पूरी जिंदगी में ढल जाता है ,
कहीं पूरी जिंदगी
एक पल में बदल जाती है ,
फिर भी आदमी
पूरी जिंदगी नहीं जीता है ,
टुकडे टुकडे पल
पूरी जिंदगी से
महत्वपूर्ण होते हैं ,
वह उसी को जीता है /
आत्म स्वीकृति
पूरी जिंदगी की हो सकती है
परन्तु
उन टुकड़ा टुकड़ा पलों को
छोड़ कर बनाया
जिंदगी का कैनवास
केवल आड़ी- तिरछी लकीरों का –
समूह होगा ,
अर्थहीन ,भ्रष्ट , प्रवंचक – – – –
न जाने क्या क्या /
जिंदगी
ज्ञात- अज्ञात रसों का समावेश है
किससे
किसके लिए
किसके द्वारा
यह महत्वहीन है /
संबोधन
किसी के लिए हो सकता है
दुनिया में जितने भी रिश्ते हों /
जीवन का अगला पल
सत्यम ,शिवम् ,सुन्दरम से –
ओतप्रोत हो
इसी कामना के साथ ,
इसी आत्म स्वीकृति के साथ ,
मैं
टुकड़ा -टुकड़ा
भोगी जिंदगी में
आपका गुनहगार हूँ
मुझे क्षमा करें
यही अंतिम सत्य है
जीवन का /

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