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तीसरे अध्याय का प्रारंभ —

bebaak
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अभी अभी मौसम में अच्छी खासी ठंढक थी . रजाई अभी बाहर ही थी ,एका एक मौसम में भयानक परिवर्तन आ गया .लोगों के कूलर साफ होने लगे . पंखे चलने लगे .कहीं कहीं ए.सी . से बाहर गरम हवा निकलने लगी .आज भारतीय राजनीति , प्रजातंत्र ,और जनमानस की भी यही हालत हो रही है .अभी अभी सार्थक बहस हो रही थी . लोग भ्रष्टाचार के घाव दिखा रहे थे इलाज के बारे में सोच रहे थे . हर व्यक्ति डाक्टर बना अपना अपना नुस्खा लिख रहा था ,हुनर दिखा रहा था .जोर शोर से सफाई की बात कर रहा था .चारो ओर शुद्ध वातावरण होने की आस जगी थी .भारतीय प्रजातंत्र की चारो ओर जय जय कार हो रही थी .लोग जनमानस के विश्वास और उसके धैर्य की दुहाई दे रहे थे . जिस तरह कार रेस में आगे निकलती कार को ठोकर मार दी जाती है ,और वह रेस से बाहर हो जाती है वही हालत आज भ्रष्टाचार पर हो रही सार्थक बहस के साथ हो रहा है . वह कुछ लोगों की कुचेष्टा से पटरी से उतर चुकी है .लोग बाग़ ताल ठोंक रहे हैं अपनी मुश्के दिखा रहें हैं .बहस को वे उबड़ खाबड़ रास्ते पर ले जा चुके हैं . आज भारतीय प्रजातंत्र ,राजनीति और जनमानस की वास्तविक परीक्षा का समय आ चुका है .अब यह अंतिम रूप से सोचने का भी समय है कि हम किधर के लिए चले थे औए किधर को जा रहे हैं .
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आज भ्रष्टाचार की जब चर्चा होती है तो कुटिल जन बाबा रामदेव के स्त्री वस्त्र में भागने की बात करते हैं . वे यह भूल जाते हैं कि मूक जनों को उन्होंने वाणी दी थी , देखने ,सुनने की शक्ति दी थी . यह चर्चा नहीं होती कि कैसे उन्होंने भारतीय जनमानस के खोये आत्मविश्वास को जागृत किया .कैसे पुष्पित ,पल्लवित किया .आज उन्हें व्यापारी करार दिया जाता है .लोग भूल गए कि तत्कालीन प्र.मं.नेहरू जी ने टाटा से विदेशी मुद्रा बचाने के लिए कास्मेटिक वस्तुओं का उत्पादन करने का आवाहन किया था . बाबा राम देव ने जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण एवं विपणन प्रारंभ किया है .यहाँ मेरा उद्देश्य उसका विज्ञापन करना नहीं है .परन्तु यह आग्रह करना अवश्य है कि उन वस्तुओं के गुण दोष के आधार पर आलोचना होनी चाहिए .यदि “पतंजलि “द्वारा उत्पादित वस्तुवें प्रतिस्पर्धा में आती हैं या आना चाहती हैं तो उसका स्वागत होना चाहिए इससे जनता को कम मूल्य पर अच्छी वस्तुवें उपलब्ध होंगी .जो वस्तुवें अच्छी होगी वे प्रतिस्पर्धा में टिकी भी रहेंगी .यही अर्थशास्त्र का सिद्धांत भी है . आज भारत में शहरी उपभोक्ता के लिए गुणवत्ता युक्त सामान उपलब्ध है .परन्तु सुदूर ग्रामीण इलाकों में ,यदि आप देखें तो, कम गुणवत्ता की वस्तुवें बिकती हैं .क्योंकि व्यापारी को इसमें कमीशन ज्यादा मिलता है और वह वही सामान दूकान पर रखता है .उपभोक्ता के पास विकल्प भी बहुत कम होता है .
बाबा रामदेव लोगों को घर में आसन ,प्राणायाम करने को कहते हैं .प्राणायाम ,आसन भारतवर्ष में हजारों साल से रहा है .बाबा रामदेव ने केवल उनसे प्राप्त होने वाले फल को वैज्ञानिक दृष्टि से सिद्ध किया है . यह आपके ऊपर है कि आप स्वयं देखें और निर्णय करें .क्या यह आपके लिए हितकारी है ? जनता को फ़ायदा हो रहा है .लोग कर रहे हैं परन्तु इसकी आलोचना होती है , छिद्रान्वेषण किया जाता है .समाज के विकास के लिए आलोचना होनी चाहिए परन्तु आलोचना केवल आलोचना करने के लिए की जाय , यह उचित नहीं है .इससे विकास की गति बाधित होती है , चाहे वह परिवार की हो ,समाज की हो या राष्ट्र की हो , लोगों को यह सोचना चाहिए .हम आलोचना करते हैं कि हमारे पुराने मनीषियों ने अपने ज्ञान को , आयुर्वेद के अनुभव को , केवल अपने तक सीमित रखा , उसे जन जन तक प्रचारित नहीं किया , यह सही भी है .अब आज बाबा रामदेव द्वारा उसे सर्व सुलभ कराया जा रहा है तो वह भी आलोचना का विषय हो रहा है .यह तो गदहा ,पिता पुत्र की कहानी हो गई .केवल आलोचना करने के लिए आलोचना मत करिए .गुण दोष के आधार पर आलोचना ही समाज के समग्र विकास की कुंजी है .बाबा रामदेव ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई , जन जागरण किया , सरकार ने पुलिस के सहयोग से भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठे प्रथम कदम को रोकने का प्रयास किया और सफल हुई . एक अध्याय का पटाक्षेप हो गया .
एक समाज सेवी अन्ना हजारे हैं .उन्होंने ने भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाई , जन जागरण किया .लोग जुटते गए , कारंवा बनता गया .प्रशासन का काम ही है ,जुट रहे ,विरोध कर रहे लोगों को तितर वितर करना ,सरकार की सुरक्षा करना . अहिंसक आन्दोलन को भी तोड़ने के बहुत से हथकंडे सरकार के पास हैं .जैसा क्रिकेट के खेल में होता है ,यदि बल्लेबाज किसी बाल को ठीक द्गंग से खेल रहा होता है तो बालर उसी तरह की बाल फेंकता है और गलती करने का इंतज़ार करता है .वही हाल आज हो रहा है .लोकपाल लटक रहा है ,भीड़ अपना धैर्य खो रही है , गलती कर रही है ,सभी को अपनी रोज़ी रोटी की पड़ी है .लोग कब तक अन्ना के साथ हड़ताल पर बैठेंगे ,भीड़ कम हो रही है . बस इसी का तो इन्हें इंतज़ार था . आज मुख्य मुद्दा समाप्त हो गया है , तमाम नए मुद्दे बन गए हैं अब ये पहले उनको निपटायेंगे फिर भ्रष्टाचार का ,लोकपाल का मुद्दा देखा जाएगा . यह दुसरे अध्याय का पटाक्षेप है .
जनता नियम कायदे बनाने के लिए अपना प्रतिनिधि चुनती है .पार्टियां जातिगत एवं साम्प्रदायिक समीकरण को देख कर जीतने वाले प्रत्याशी घोषित करती हैं .इसमें कितना कालेधन का प्रयोग होता है यह चुनाव आयोग की सक्रियता से जाहिर हो गया है . अभी झारखंड में राज्यसभा का चुनाव रद्द कर दिया गया है ,परन्तु कोई भी पार्टी लोकतंत्र पर पड़े इस तमाचे के लिए शर्मसार नहीं है . यह पैसा किसका था ,क्या कार्यवाही हुई , यह कभी पता नहीं चल सकेगा .अब प्रश्न उठता है क़ि जब गलत रास्ते का प्रयोग करके , अनाप शनाप काले धन का उपयोग करके ,जातीय / साम्प्रदायिक नारे देकर जो लोग चुने जायेगें तो क्या उनसे शुचिता की अपेक्षा करना उचित है ?चुनाव में लगे काले धन को यदि वे भ्रष्टाचार से न निकाले , अगले चुनाव के लिए पैसा न इकट्ठा करें तो आखिर क्या करें ?आज के चुनाव की स्थिति को देखते हुए चुनाव आयोग को इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए . खैर ये जैसे भी चुने गए , अब तो चुन लिए गए .जनता दर्शक दीर्घा में बैठी रहेगी .ये जैसे चाहे उछले कूदें , पांच साल तक ऐसा करने का उन्हें अधिकार आपने ही दिया है .
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खुले आम घुस लेने और देने का प्रयास किया जा रहा है ,चुनाव रद्द हो रहा है .ये लेने और देने वाले ,चुने हुए और चुने जाने वाले लोग हैं .जब ये चुन लिए जाते हैं तो माननीय हो जाते हैं .इनके कहे वाक्य कानून बन जाते हैं .फिर इन्हें कुछ मत कहिये नहीं तो ये कुर्सी पर बैठे रहेंगे और आपको अपराधी की तरह दिन भर खडा किये रहेंगे . वाह रे गरूर ,वाह रे घमंड ! देखिये न ये लोग कितने अच्छे हैं !अपना पैसा खर्च करके ,घर बार बेंच कर जनता की सेवा में आना चाहते हैं ,जनता की सेवा करना चाहते हैं फिर भी लोगों को तकलीफ हो रही है .चुनाव सुधार की प्रक्रिया को गति देने के लिए अब समय आ गया है .चुनाव आयोग को कुछ करना चाहिए .बिना आदरणीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के इस देश में न तो कुछ हो रहा है और नहीं कुछ होने वाला है .यह देखना समीचीन होगा कि कब तक जनता उद्धारक सर्वोच्च न्यायालय चुनाव सुधार प्रक्रिया में दखल देता है .
विभिन्न अक्षरों एवं मात्राओं के संयोग से शब्दों का निर्माण होता है .कई शब्दों के युग्म से वाक्य बनते हैं .वाक्यों के संयोग से अनुच्छेद आकार ग्रहण करते हैं .कई अनुच्छेदों को मिला कर कहानी बनती है ,लेख बनता है , कविता बनती है .आज के भारतीय परिवेश में अलग अलग रूप रंग के लोगों को एक दुसरे को अर्थ देते हुए वाक्य में परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारंभ करने का समय आ गया है .
विगत स्थितियों को देखने से यह स्पष्ट हो चुका है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध राजनैतिक दल सम्यक रूप से आवाज़ नहीं उठा रहे हैं , फिर आवाज़ कौन उठाएगा ? जनता ?परन्तु उसे एक सशक्त नेतृत्व कि जरुरत होगी .बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के भावी सहयोग से लिखे जाने वाले तीसरे अध्याय की ओर जनता की निगाह लगी है . यह देखना दिलचस्प होगा कि तीसरे अध्याय की कथा ,पटकथा किसी निष्कर्ष पर पहुंचती है या उसका भी हस्र प्रथम ,द्वितीय अध्याय की तरह ही होता है .

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