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कुछ खट्टा कुछ मीठा ::जे जे का संग (फीड बैक )

bebaak
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यह जीवन भी बड़ा विचित्र है कभी अनजान चेहरे अपने से लगने लगते हैं , उनसे बात करने का, संपर्क करने का मन करता है . मेरा अनुमान है कि कभी न कभी आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा . ऐसे क्षण कितने हसीन होते हैं .यादों में बसे रहते हैं .जागरण जंक्शन ने भी ऐसा ही मंच दिया है , ट्रेन में सफर की तरह .हम मुसाफिरों की तरह चढ़ रहे हैं , उतर रहे हैं .यात्रा जारी है . आभासी दुनिया में केवल शब्द बोलते हैं , वाणी मूक होती है .शब्दों के आदान प्रदान से दिल में उमंगेंउठती रहती हैं. सभी को इस मंच रूपी ट्रेन के साफ सुथरे डिब्बे में सफर के लिए जागरण जंक्शन सम्पादक मंडल का आभारी होना चाहिए .हम इनके अहर्निश प्रयास की प्रशंसा करते हैं . आशा है सभी पाठक एवं लेखक वृन्द मेरी भावनाओं से सहमत होगें .
मैं अपने शिक्षा काल से ही कुछ लिखता पढ़ता , कभी कभी छपता भी रहा हूँ .जीवन की आपाधापी में जैसे यह सब पीछे छुट गया .मन में कभी कभी भाव उमड़ पड़ते थे , कुछ किसी पन्ने पर लिख दिया करता ,फिर वह इधर उधर .छुट्टी में आई मेरी बेटी ने मेरी कुछ रचनाएँ देखी और जागरण जंक्शन पर मेरा रजिस्ट्रेशन करा कर पहली रचना पोस्ट कर दी , क्योंकि उस समय मुझे टाइप करना नहीं आता था .उसी ने मेरा नामकरण भी कर दिया ,”कृष्णा श्री ” . धीरे धीरे सुधि पाठकों का प्रोत्साहन पाकर लिखता गया .अब तो यह अपने घर सा लगने लगा है और दिल से यह आवाज़ आती है” मेरा मंच “.
मैं मानता हूँ कि मंच पर आने वाले सभी सदस्य काफी विद्वान एवं मौलिक सोच वाले हैं .क्योकि यदि वे ऐसा नहीं होते तो इस मंच से जुड़ते ही नहीं .बहुत से लेखों में समाज के विकास के लिए कुछ मौलिक सुझाव होते हैं परन्तु वे केवल मंच के पाठकों तक ही सीमित होकर रह जाते हैं .समाज के हित के लिए उनका उपयोग नहीं हो पाता .मेरे विचार में जागरण जंक्शन सम्पादक मंडल को उन लेखों, सुझावों को सम्बंधित विभागों / सरकारों को भेजने में रूचि दिखानी चाहिए , जिससे समाज हित में उस श्रम का उचित उपयोग हो सके .इससे मंच की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी और मंच के सुधि लेखक और प्रखरता से अपनी बात को कहने का साहस कर सकेगें .
इधर देखने में आ रहा है कि मंच पर लेखकों की संख्या लगातार बढ़ रही है . यह जे जे की बढ़ रही लोकप्रियता का एक प्रमाण है . अपने अहर्निश प्रयास से सम्पादक मंडल सुनियोजित ढंग से मंच को संचालित कर रहा है .इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं . इसी को देखते हुए मैंने अपने लेखों के माध्यम से टाप ब्लॉग को एक या दो दिन में बदलने तथा नई कटेगरी” टाप फाइव या टेन ब्लॉग आफ दि वीक” बनाने का सुझाव दिया था .टाप ब्लॉग तो एक दो दिन में बदल जा रहे हैं .परन्तु” टाप फाइव बलाग आफ दि वीक” सम्पादक मंडल की कृपा से मेल पर आ रहे हैं . यदि इसे मुख्य पृष्ट पर स्थापित कर दिया जाय तो इससे अच्छे लेखों का प्रसार ज्यादा हो सकेगा और मंच की गरिमा भी बढ़ेगी .किसी से अपनी रचनाओं को पढ़ने का अनुरोध भी नहीं करना पडेगा , जैसा आजकल हो रहा है ,पाठक अच्छी रचनाओं से रूबरू भी हो सकेगें .
मंच पर सदस्यों का नाम लेते हुए कुछ कथानकों का निरूपण किया जाता रहा है जो कि मेरे विचार में उचित नहीं है .अपनी बात कहने के बहुत से ढंग हो सकते हैं . लेखकों को इससे बचना चाहिए , ख़ास कर महिलाओं के नाम को लेकर . इस मंच पर बहुत से ऐसे मित्र गण हैं जिनकी प्रतिक्रियाएं सदैव उत्प्रेरक का काम करती हैं .जे जे महोदय ने अपनी बात रखने का एक अवसर दिया है ,अतः मैं सभी पाठकों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ , उन्हें नमन करता हूँ .इसी क्रम में एक विशेष घटना का उल्लेख करना समीचीन होगा .मुझे “क्ष ” अक्षर टाइप करना नहीं आता था मैं उसे “क्छ” टाइप करता था .मेरे प्रिय मित्र श्री रक्ताले जी ने मेरी कमी को देखते हुए “क्ष ” अक्षर लिखने के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्रतिक्रया के माध्यम से दी . मैं उनका विशेष रूप से आभारी हूँ .इसी तरह बहुत से पाठक मित्रों ने लेखों के सम्बन्ध में अपने अमूल्य सुझाव दिए , मैं उन सभी मित्रों का ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ .मैं ऐसा मानता हूँ कि इस मंच के सभी लेखक आत्म संतुष्टि के लिए लिखते हैं ,यदि वह प्राप्त होती रहे तो यही जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है .
विगत दिनों कुछ घटनाएँ घटी ,जो बहुत ही ह्रदय विदारक रही .विचारों में विरोध हो सकता है परन्तु मनभेद नहीं होना चाहिए .जहां चार बर्तन रहते हैं वहां टकराहट प्रकृति का नियम है परन्तु टकराहट तक तो ठीक है संघर्ष एक विद्रूप स्थिति खड़ी कर देता है .सभी को अपनों की कमी तो खलती ही है चाहे वे जैसे भी हों . अपने तो अपने ही होते हैं . ट्रेन में जब लोग चढ़ते हैं तो सीट के लिए मारा मारी होती है . दो तीन स्टेशन बीतते ही सभी ऐसे घुलमिल जाते हैं जैसे पुराने परिचित हों .लोगों को भी इसी भाव को ग्रहण करना चाहिए .यात्रा तो यात्रा है.उसका आनंद लेना चाहिए ,चाहे वह किसी रूप में हो
मंच के सभी लेखक प्रतिक्रया ले -दे को कभी खुले रूप से तो कभी ढके रूप से स्वीकार कर चुके हैं .यह सामाजिक बुराइयों की तरह मंच की एक बुराई है .परन्तु इसके फायदे भी बहुत हैं .यदि प्रतिक्रया निष्पक्ष रूप से हो तो फिर कहने ही क्या ? यह लेखन में उत्प्रेरक का काम करती है .लाबी या ग्रुप बना कर या वस्तुओं की तरह मार्केटिंग करके हासिल प्रतिक्रया से वास्तविक लेखन कहीं न कहीं अवश्य प्रभावित होता है .एक वरिष्ट ब्लॉगर ने इस तरह के कृत्य को ताली बजा कर प्रतिक्रया बटोरना कहा था .इससे लेखक को पता ही नहीं चलता और वह एक दायरे में कैद होकर रह जाता है . इससे रचना धर्मिता पर असर पड़ता है .नए प्रयोगों की राह बंद हो जाती है .सृजन शीलता प्रभावित होती है .पाठक भी अच्छे लेखों से महरूम रहते हैं .
नए नए लेखक आ रहे हैं . अच्छा लिख रहे/रही हैं .परन्तु उन्हें कोई तवज्जो नहीं दे रहा है .जब वे उस धारा में आ जाते हैं तो स्वतः तैरने लगते हैं .अतः चर्चित कटेगरी को हटाना ही श्रेयस्कर होगा .इसके रहते लाभ की तुलना में नुकसान ज्यादा है .कुछ प्रतिक्रियाएं मर्यादारहित रहती हैं ,ख़ास कर महिला लेखिकाओं के बारे में ,ऐसे लोगों के एकाउंट को बंद कर देना चाहिए .
पुनः मैं अपने पाठकों , लेखक मित्रों का एवं जे जे महोदय को सुन्दर मंच प्रदान करने हेतु ह्रदय से आभार ज्ञापित करता हूँ .

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