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कन्या भ्रूण ह्त्या एवं बाल ह्त्या के कारक (जागरण जंक्शन फोरम )

bebaak
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भारत में बाल विवाह एक कुप्रथा के रूप में विकसित हुई . धीरे धीरे समाज जागरूक हुआ .कुप्रथा का विरोध प्रारंभ हुआ .इक्का -दुक्का कहीं कुछ समुदायों को छोड़ कर यह अब समाप्त प्राय है . विधवा विवाह पहले असंभव कार्य था . लोगों की सोच बदली . अब यह समाज द्वारा स्वीकार्य है .कन्या भ्रूण ह्त्या एवं बाल ह्त्या समाज में महिलाओं की दोयम होती हुई स्थिति के कारण एक प्रथा का रूप लेने की प्रक्रिया के रूप में है , भले ही लोग इसे खुले मन से स्वीकार न करें .भला हो समाज के जागरुक तबके का कि वह समय रहते जागरुक हुआ है और विरोध प्रारंभ हुआ है .
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समाज चलाने के लिए महिला एवं पुरुष की भागीदारी सामान रूप से जिम्मेदार है . परन्तु पुरुष का अहम् महिला को समान अधिकार दिए जाने से कहीं न कहीं आहत हो रहा है . महिलायें हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं , और आगे और आगे बढ़ने का प्रयास कर रहीं हैं .वही परिवार आज सशक्त है , खुशहाल है जहां दोनों कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रहे हैं .पुरुष और स्त्री रथ के दो पहिये हैं .यह केवल किताबी बातें भर नहीं हैं ,बल्कि जमीनी हकीकत है . बस जरुरत है आँखे खोल कर देखने की .
किसी भी कुप्रथा के पीछे समाज की कुछ मजबूरी होती है , कुछ विवशता होती है .साधारण इंसान हालात से हार कर उस कुप्रथा का अंग बन जाता है , लड़ नहीं पाता .लड़खड़ाते हुए उस धारा में बहने को विवश हो जाता है .बिना समस्या की जड़ खोजे उसका समाधान संभव नहीं है .बिना समाज को जागरुक किये सामाजिक समस्या का समाधान खोजना भूसे के ढेर में सुई खोजने के समान है . कन्या भ्रूण ह्त्या या बाल ह्त्या अनपढ़ कहे जाने वालों , पिछड़े कहे जाने वालों से ज्यादा पढ़े लिखे जागरुक कहे जाने वालों और तो और समाज में सभ्य कहे जाने वाले तबके में , आर्थिक रूप से सम्पन्न कथित सभ्य जनों में ज्यादा पाई जाती है .
पुरानी मान्यता है कि बेटे से ही खानदान का नाम चलता है , वंश चलता है .लोग भूल जाते हैं कि दो- तीन पीढ़ी से ज्यादा का नाम उन्हें भी याद नहीं है ,तो फिर कैसा वंश, कैसा खानदान ?इसे लोगों को समझाने की जरुरत है .इस कुप्रथा के लिए महिलाओं की समाज में स्थिति अधिक जिम्मेदार है .लड़कियां आज समाज में सबसे “साफ्ट टार्गेट ” हैं .किसी परिवार की लड़की के साथ यदि कुछ गलत घटता है तो उस लड़की की जिंदगी बर्बाद हो जाती है . साथ ही साथ परिवार भी खून के आंसू रोता है .महिलाओं को समाज ,सरकार ,प्रशासन सुरक्षा देने में असमर्थ हो रहा है .अखबार के प्रथम से लेकर आखिरी पेज तक यही खबरें रहती हैं .इन्ही खबरों से सनसनी जैसे कार्यक्रम की टी आर पी बढ़ती है .यह समाज की मानसिक स्थिति को उद्घाटित करता है .. बेटे बेटियाँ तो हर घर में होती हैं .परन्तु बेटे !उनकी हरकतें संस्कारों में हो रही गिरावट को रेखांकित कर रही है .यह समाज में बढ़ रही उच्छ्रिखलता का परिणाम है . क्या इसके लिए बेटों के माँ बाप जिम्मेदार नहीं हैं ? वे कैसी परवरिश दे रहे हैं ?
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लड़कियां हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं .यह हाई स्कुल एवं इंटर मिदियेटके परिणाम से स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है . उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियां अपनी कर्मठता एवं लगन से आगे आ रही हैं और लड़कों से अच्छा कर रही हैं .लेकिन उनकी संख्या, जनसंख्या की तुलना में बहुत कम है .माँ बाप की जिम्मेदारी उनकी शादी भी है .लड़कों को माँ बाप जितना ज्यादा पढ़ाते हैं वे उतना ज्यादा दहेज़ लेकर आते हैं और जब लड़की को ज्यादा पढ़ाते हैं तो वह उसी अनुपात में दहेज़ लेकर जाती है .बस यहीं से अंतर प्रारंभ हो जाता है हमें अपनी मानसिकता को बदलना होगा .दहेज़ रूपी दानव का जब तक संहार नहीं होगा , मध्यम वर्ग में हो रही कन्या भ्रूण ह्त्या या बाल ह्त्या रोकने की बात भी सोचना बेमानी होगा .ज्यादा तड़क भड़क , सजावट , खानपान पर आखिर इतना खर्च क्यों ? शादी ब्याह दो विपरीत लिंगियों के एक रिश्ते में बधने की शुरुआत है .फिर इतना दिखावा क्यों ?बाल विवाह ,विधवा विवाह जैसी कुरीतियों के विरुद्ध जन जागरण किया गया था , वैसे ही दहेज़ प्रथा के विरुद्ध भी सशक्त “विद्रोह “का समय आ गया है .कन्या भ्रूण ह्त्या एवं बाल ह्त्या के जड़ में कहीं न कहीं ये कुरीतियाँ आग में घी का काम कर रही हैं .अंततः प्रश्न उठता है , फिर सादगी पूर्ण सामूहिक विवाह क्यों नहीं ?औकात से अधिक दिखावा क्यों ?एक सूक्त वाक्य है ” महाजनों एन गतः सः पन्था ” . समर्थ लोगों को आगे आकर पहल करनी चाहिए , आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए .
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कन्या के जन्म से ही माँ बाप दहशत में आ जाते हैं, आगे आने वाली विपत्ति से डर कर . हर क्षण हर पल दहशतजदा , बेटी ठीक से कालेज पहुंची तो होगी ,अब आ रही होगी ,अभी तक पहुंची क्यों नहीं , सब ठीक तो होगा ,जैसे सवाल हर माँ के दिमाग में कौंधते रहते हैं . यह किस स्थिति का परिचायक है ? आज मिसाइल प्रोजेक्ट की प्रमुख एक महिला है .जिसने विश्व में भारत का नाम रौशन किया .यह सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है .हम फुले नहीं समा रहे परन्तु घटता लिंगानुपात हमें ठेंगा दिखा रहा है . महिलायें कहीं भी सुरक्षित नहीं है . कैसा विरोधाभास है . कन्या भ्रूण ह्त्या एवं बाल ह्त्या को रोकने में हम तभी सफल होंगे जब तक हम इसके कारकों को नेस्तनाबूत न कर दें . यही प्रथम और अंतिम विकल्प है .अन्यथा माँ बाप बेटी के जन्म से डरते रहेंगे , कन्या भ्रूण ह्त्या एवं बाल ह्त्या होती रहेगी .

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