Menu
blogid : 5699 postid : 1240

विरोध ?विरोध ?विरोध ???

bebaak
bebaak
  • 113 Posts
  • 1683 Comments

विचारों में विरोध होना , समाज के सुदृढ़ एवं जागरुक होने की एक निशानी है .इसी से समाज आगे बढ़ता है . नई नई पद्धतियाँ , नए नए विचार सामने आते रहते हैं .सामाजिक संरचना में सतत बदलाव की प्रक्रिया आगे बढ़ती रहती है . सामाजिक बदहाली को चिन्हित किया जा सकता है .परिवर्तन की बयार बहती ही रहती है .ऐसे समाज को एक जागरुक समाज की संज्ञा दी जा सकती है .विरोध, विरोध की तरह हो तो यह समाज के लिए फलदायी हो सकता है .परन्तु विरोध के लिए विरोध हो तो यह सामाजिक विघटन का कारक बनता है .यहीं से संघर्ष का सूत्र पात होता है .समाज में नाना प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न होती है और विकास की जगह विकास चक्र उलटी गति से घूमना प्रारम्भ हो जाता है .
जब विचारों के विरोध की बात आती है तो गांधी जी की याद आती है . उन्हीने विरोध का एक अनूठा प्रयोग किया . विरोध किया तो एक विकल्प दिया . विकल्प ऐसा कि विकास की गति बाधित नहीं हुई बल्कि और विकास हुआ .उन्होंने विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार किया और स्वदेशी का नारा दिया .इससे लाखों करोड़ों लोगों को रोजगार मिला .विकास की गति वाधित नहीं हुई .विकास का चक्र तेजी से घूमा .विदेशी वस्तुओं का प्रखर विरोध हुआ .परिणाम ! जन जागृति आई , लोगों ने श्रम को पहचाना ,लघु उद्योगों का विकास हुआ ,मांग बढ़ी ,उत्पादन बढ़ा ,उपभोग बढ़ा ,लोगों को रोजगार मिला ,कार्यशील पूंजी बढ़ी , नए उद्योग धंधे लगे ,लोगों का जीवन स्तर सुधरा . आगे और आगे विकास का चक्र घूमता रहा . यह था विरोध का प्रतिफल !
आज हम रोजमर्रा की जिंदगी में तरह -तरह का विरोध देखते हैं . कोई ट्रेन रोक दे रहा है तो कोई पूरी सड़क जाम किये दे रहा है . कोई सरकारी अधिकारियों को बंधक बना ले रहा है .इतना ही नहीं कुछ लोग बस, ट्रेन जला कर विरोध प्रकट कर रहें हैं .कुछ मारपीट पर आमादा हैं , कुछ हिंसात्मक तोड़ फोड़ से गुरेज नहीं कर रहे हैं .आज नए नए विरोध के तरीके इजाद किये जा रहे हैं .राजनौतिक विरोध में नुरा कुश्ती की जा रही है .पता ही नहीं चलता कि ये विरोध कर रहे है या विरोध का नाटक ! संसदीय परम्परा का प्रतिदिन मखौल उड़ाया जा रहा है . यदि आप कुछ कहते हैं तो कहा जाता है कि संसद का अपमान किया जा रहा है .जबकि सीधे प्रसारण को इन्हें दिखा कर पूछने का समय आ गया है कि वहां वे क्या कर रहे थे ?यह भी विरोध का एक तरीका हो सकता है .
कन्या भ्रूण ह्त्या का खुल कर विरोध या समर्थन नहीं किया जा रहा है .परन्तु आमिर खान के पारिश्रमिक को लेकर बवाल किया जा रहा है और कन्या भ्रूण ह्त्या को अप्रत्यक्ष समर्थन देने का प्रयास हो रहा है. अरे इस बात पर खुश तो होइए कि इस मुद्दे पर बोलने वाला तो कोई हुआ जिसकी आवाज का कोई महत्त्व तो है .परन्तु लोग बाग़ तो नफा नुकसान देखने में लगे हुए .
विरोध सकारात्मक हो तो उसके क्या कहने . नए नए विचार , नई नई बातें सामने आती रहती हैं , समाज बदलता रहता है .अव्यवहारिक बातों का ,सोचों का, कार्य प्रणालियों का खंडन मंडन होता रहता है . विवेक शील समाज उसे धारण कर आगे बढ़ता रहता है , परन्तु शर्त यह है कि विरोध मर्यादा में ,नीतिगत नियमों के अंतर्गत , सामाजिक परिवेश को सुदृढ़ करने हेतु , मानवता के हित में हो . धरातल से जुडा विरोध सदैव से ही हितकारी रहा है और हितकारी रहेगा भी .हम केवल आज का ही देख कर ही कोई भी विरोध करते हैं , परन्तु दीर्घकाल में उसका क्या असर होगा इस तरफ हमारा ध्यान नहीं रहता . शक्ति प्रदर्शन ही अब विरोध का एक मात्र अस्त्र रह गया है . विद्वत जन तो अब मुखर होते ही नहीं .
वाराणसी में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस जुमले से भलीभांति परिचित है कि वाराणसी भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है . हो सकता है कि आप इस कथन से सहमत न हों , परन्तु यदि आप काशी का एक बार भी भ्रमण कर रात्री विश्राम कर लें तो आप भी मानने को बाध्य हो जायेगे कि काशी तीनों लोकों से न्यारी है तथा वास्तव में भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी है . इस समय महीनों से इस धर्म नगरी की सड़कें ऐसे खुदी हैं जैसे गड़े हुए धन को खोजने की कोशिश की गई हो . एक बार जिस सड़क से आप गुजर जायेगें दुबारा जाने की हिम्मत नहीं होगी .बिजली की हालत यह है कि ३० -३० घंटे तक बिजली नहीं रहती .यदि आपको जाम को वास्तविक रूप में जानना हो तो दिन के समय किसी भी चौराहे पर खड़े हो जाइए धुप में घंटो बिलबिलाते बच्चे एवं महिलायें दिख जायेगी .अब एफ .एम चैनलों पर भी बताया जा रहा है कि फलां रास्ते से मत जाइए , वहां जाम लगा है . लोगों ने इसे अपनी नियति मान लिया है .यहाँ के लोग कितने सहिष्णु हैं . कोई हलचल नहीं ,कोई विरोध नहीं है . सब आराम से बनारसी मस्ती में डूबे हैं .विरोध का एक तरीका यह भी है .
यही शांत बनारसी साधू संतों के साथ अविरल गंगा -निर्मल गंगा के लिए आंदोलित हैं , अपना विरोध जता रहे हैं ,परन्तु सरकारों पर शांत विरोध का कोई असर नहीं हो रहा है क्योकि सरकारे अब उग्र विरोध की आदी हो गई हैं . यदि अविरल गंगा -निर्मल गंगा की मांग नाजायज है तो भी सरकारों को जनता को बताना चाहिए . क्यों सभी पार्टियों के सांसद और मंत्री कहते आ रहे हैं कि अविरल गंगा -निर्मल गंगा का वे समर्थन कर रहे हैं ? फिर कार्यवाही क्यों नहीं हो रही है . इसे इस तरह लटकाना या जनता के धैर्य की परीक्षा लेना कहाँ तक उचित है ?अब सरकारे ही बताएं कि सही की मांग एवं गलत का विरोध कैसे किया जाय ?

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply