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सरकार ,जनता और एकाधिकार ( जागरण जंक्शन फोरम )

bebaak
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सरकार कोई स्वरूप नहीं होती . यह चुने हुए लोगों में से चुने हुए लोगों का एक समूह होती है ,जिसे जनता समाज के लिए नियम , कायदे , कानून बनाने के लिए चुनती है . जनता के ये प्रतिनिधि समय -समय पर समाज की आवश्यकता के अनुरूप कानून बनाते रहते हैं .
समाज पर आज बाज़ार का बृहद प्रभाव है बाज़ार मांग और पूर्ति के सिद्धांत से नियंत्रित होता है .कुछ रोजमर्रा के प्रयोग की चीजों के निर्माण और विपणन में एकाधिकार स्थापित न हो जाय यह देखना सरकार का काम है , जिससे वस्तुवें सर्व जन सुलभ रहें .कम क्रय शक्ति वाले उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए सरकार कुछ वस्तुवों पर सब्सिडी देती है , जिससे बाज़ार की मांग और पूर्ति संतुलित रह सके . कम क्रय शक्ति वाले उपभोक्ता को भी राहत मिल सके .परन्तु सरकार का यह दायित्व भी बनता है कि वह देखे कि सब्सिडी का सही इस्तेमाल हो रहा है या नहीं ? किरासिन आयल पर सब्सिडी दी जा रही है , परन्तु देखा यह जा रहा है कि डीज़ल में उसकी मिलावट हो रही है , क्योकि डीजल का मूल्य अधिक है . खाद पर सब्सिडी दी जा रही है , अधिक अन्न उत्पादन के लिए इसे दिया जाना भी जरुरी है .यह नियम , यह उदारता किसान तक नहीं पहुँच पा रही है .आंकड़ों के हिसाब से उत्पादन तो हो रहा है परन्तु केवल लेखा पुस्तकों में ही . बस यहीं से बाज़ार में उथल -पुथल प्रारंभ होती है और बाज़ार को नियंत्रित करने का सरकार के पास कोई साधन ( उत्पादन )नहीं होता है . मांग अधिक होती है , पूर्ति कम होती है .बाज़ार डावांडोल रहता है . वास्तविक उपभोक्ता परेशान रहता है . इस स्थिति पर नियंत्रण के लिए सरकारी तंत्र बना हुआ है . सरकार फिर भी सक्षम नियंत्रण नहीं कर पा रही है .सीजन में किसान को पूरी खाद नहीं मिल पाती है .वह एक -एक बोरी खाद के लिए दर दर कि ठोकरें खाता फिरता है .यह राजनैतिक अक्षमता कि एक बानगी भर है .
व्यापारी का बाज़ार में मुख्य उद्देश्य धन अर्जित करना होता है . वह उत्पादन लागत कम करके , अपने कामगारों को प्रशिक्षित करके , पूंजी का उचित विनिवेश करके , मांग को बढ़ा कर ,उत्पादन को संतुलित रखते हुए , नई प्राद्योगिकी का उचित प्रयोग करके लाभ की मात्रा को बढाने का प्रयास करता है . अब व्यापारी लाभ प्राप्त करने के अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अतिरिक्त भी अन्य साधन खोज रहे हैं .उसी की परिणति भ्रष्टाचार के रूप में हो रही है . सरकारें जो नियम बनाती हैं वे कानून के दायरे में रहते हुए , मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बाद बनती है , परन्तु वहां किसी बात पर बहस की गुंजाईस नहीं होती है , वरन जो मंत्री या विभाग द्वारा बना दिया जाता है उसी पर सब ठप्पा लगा देते हैं और पूरा देश उसे मानने को बाध्य होता है . मन्त्रिपरिशदों में चर्चा में व्यतीत समय इसके गवाह हैं .बिना स्वस्थ परिचर्चा के मंजूरी , यह कितना देश हित में होगा , यह सोचने की बात है .
पहले के बाज़ार में दलाल होते थे , उन्हें समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था . इसके बाद एजेंट हुए , उन्हें भी कोई ख़ास महत्त्व नहीं मिला . अब हर प्रान्त की राजधानी या बड़े शहरों में आपको “लाविस्ट “नामक जीव मिल जायेंगे . दो लोगों के बोच सेतु बनना इनका काम ही है .ऐसा भी सुनने में आता है कि ये सरकार और औद्योगिक घरानों के बीच भी सेतु का काम कर रहे हैं . इस स्थिति में उस सरकार से जनहित की अपेक्षा करना क्या उचित होगा ? जितने भी हाई प्रोफाइल घोटाले हुए हैं सभी के पीछे लगभग ऐसे समूह का हाथ रहना अप्रत्याशित नहीं है . जब तक ऐसी मानसिकता के लोग हमारे कथित नेता बने रहेगें इस तरह के घोटालों को एक सामान्य घटना के रूप में जनता को स्वीकार करने की आदत डालनी पड़ेगी .
एकाधिकार एक उत्पादक का हो सकता है या बहुत से उत्पादक इकाइयों द्वारा एक समूह बना कर कीमतों का निर्धारण किया जा सकता है . आज भारत में सभी पेट्रोलियम पदार्थों के उत्पादक एक समूह बना कर कीमतों का निर्धारण कर रहे हैं और सितम यह कि सरकार कह रही है , कीमतें बाज़ार द्वारा निर्धारित हो रही हैं . यद्यपि पेट्रोलियम पदार्थों के उपभोग का अधिकाँश भाग आयात किया जाता है .इरान से सरकार ने समझौता किया परन्तु आज तक उसे कार्य रूप में परिणत करने में सफल नहीं हुई . जबकि इरान हमारे आयात के अधिकाँश भाग की पूर्ति करने में सक्षम है . दुसरे देश के दबाव में अपनी जनता को प्रताड़ित करना , जनविरोधी नीतियाँ बनाना क्या देश द्रोह की सीमा में नहीं आता ? अब सरकार को यह निर्णय करना है कि वह तेल कंपनियों के दिशा निर्देश पर चलेगी या तेल कम्पनियां उसके दिशा निर्देश पर . सरकार कहती है कि वह किरासन, रसोई गैस पर बहुत ज्यादा सब्सिडी देती है . इस सब्सिडी का लाभ सभी उपभोक्ताओं को होता है . सरकार अर्थशास्त्र के किस सिद्धांत के आधार पर यह सब्सिडी दे रही है ? जबकि होना यह चाहिए कि कम क्रय शक्ति वाले उपभोक्ताओं को राहत दिए जाने के लिए सब्सिडी दी जाय परन्तु यहाँ तो उलटी गंगा बह रही है . इस बिंदु पर कहीं कोई चर्चा भी नहीं हो रही है .
किसी व्यक्ति की आँखों पर पट्टी बाँध दी जाय और अगल- बगल , आगे पीछे से चांटा मारा जाय , वह व्यक्ति बौखला कर मारने वाले को पकड़ने का प्रयास करता है तथा इधर -उधर टकरा कर अपना ही मुंह तोड़ लेता है .यही हाल आज जनता का हो रहा है , कहीं कोई तारण हार नहीं दिख रहा है . यदि सच पूछा जाय तो यह यू पी ए सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है .

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