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दबंग !दबंग !!दबंग !!!

bebaak
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दबंग , यह बहुत पुराना शब्द है . इसकी गूंज हर क्षेत्र में सुनाई पड़ती है . गाँव- कस्बे में सड़क के बीचो बीच मोटर साइकिल या कार खड़ी कर , घंटों पान की दूकान पर ,चार चमचों से घिर कर , गप्प लड़ाना ,पान खाना और खा कर चल देना, इलाके के दबंगों की निशानी है . राजनीति के क्षेत्र में, जेल में रहते हुए चुनाव जीतने वाला दूसरा दबंग है . क्रिकेट में अन्प्लेयेवुल बाल पर छक्का ,चौका जड़ने वाला अच्छा दबंग है . पढ़ाई में शांत स्वभाव से अकेले रहने वाला , अपने में खोया खोया , रिकार्ड तोड़ने वाला अलग दबंग है . कार्यालय में सबसे जल्दी सही सही काम करने वाला , बॉस की आँख का तारा , धांसू दबंग है . बिना बात ,बिना जाने , बिना समझे कूद कर अपनी बात जबरदस्ती मनवाने वाला अकेला दबंग है . दबंगों की तमाम किस्में और जमाते पाई जाती हैं .इसके लिए किसी योग्यता का होना जरुरी नहीं है , बस लीक से हट कर कुछ अलग ,कुछ अप्रत्याशित करिए , आप दबंग घोषित हो सकते हैं . बस प्रयास करिए , सभ्य समाज की भाषा में कुछ उलजलूल हरकत करिए, जबरदस्ती अपनी बात मनवाने की कोशिश करिए , सभ्य जन कुछ कह कर खुद ही चुप हो जायेंगे , बस आप दबंग घोषित . घबदाइये नहीं , बस थोड़ा सा प्रयास ही काफी होगा . थाने के निरीक्षण में कप्तान की दबंगई आपने देखी है ? जांच में यदि कोई खामी न मिले तो सिपाही की तोंद निकली है , वर्दी प्रेस नहीं है ,जूते का फीता टूटा है , जैसे जुमले मढ़ दिए जाते हैं . दुसरे को नीचा दिखाना दबंगई की पहली सीढ़ी है .
साहित्य में भी दबंग होते रहे हैं परन्तु वे बीच सड़क में साइकिल खड़ी कर पान खाने वाले नहीं रहे , बल्कि वे कवि सम्मेलनों में एकदम आखिर में कविता पाठ करते थे . लोग उनकी दबंगई देखने के लिए ,सुनने के लिए रात -रात भर शांतिपूर्वक , बिना पुलिस के बैठे रहते थे .समय बदला , बात बदली , आज इसके ठीक उलटा हो रहा है . लोग बाग़ ताली पीटने वालों की जमात इकट्ठा कर रहे हैं और दबंग बन रहे हैं . अगर आप कुछ लिखते -पढ़ते हैं तो आजमा कर देखिये बड़ा बेजोड़ नुस्खा है .
दबंग फ़िल्म के आने के बाद से हर क्षेत्र में दबंग बनने का प्रयास किया जा रहा है . पहले भी किया जाता रहा है परन्तु इस स्तर का नहीं . इस वैज्ञानिक युग में अब तो पहले भूमिका बना ली जाती है , वातावरण तैयार किया जाता है .कुछ चेले हाँ में हाँ मिलाने वाले इकट्ठा कर लिए जाते हैं , फिर दबंग महोदय रूबरू होते हैं . अब जलवा देखिये . चारो और जयजय कार , बस चर्चा ही चर्चा , सबसे चर्चित . सभ्य जन हमसे क्या मतलब की तर्ज़ पर अंतर्ध्यान और ये महोदय स्वनाम धन्य दबंग घोषित .पूंछ उठाने वाले तैयार . इसमे घबडाने की बात नहीं है , बस थोड़ी हिम्मत करिए , थोड़ा बेहयाई का पुट मिलाइए , गाली गलौज की भाषा का इस्तेमाल कीजिये . पान तो उधार मिल ही जाएगा , आखिर उसे भी तो दूकान चलानी है . चमचे ! उनकी चिंता आप क्यों करते हैं ? माले मुफ्त दिले बेरहम , जहां मुफ्त की मिलेगी , वे भी वहीँ मिलेगे . देखिये कैसे आपकी दूकान सरपट दौड़ती है . बस एक बात का ख्याल रखिये और वह बहुत जरुरी भी है . बीच बीच में मदारी की तरह कुछ करतब जरुर दिखाते रहिये . ज्यादा अंतराल से हो सकता है कोई दूसरा आपका ताज छीन न ले जाय . खबरों में बने रहने के लिए कुछ धूम धडाका समय समय पर जरुरी तथा एक मान्य सिद्धांत भी है .
ऐसा नहीं है कि दबंगई केवल कुछ शोहदे टाइप के गुर्गों से ही चलती है . जबसे यह प्रजातंत्र , लोकतंत्र का चक्कर चला है ,अब आपको क्या बताना , आपतो खुद ही समझदार हैं , कुछ सावधानी तो बरतनी ही होगी तभी आप सफल दबंग हो सकते हैं . चाटुकारों के साथ साथ आपके अपने क्षेत्र के कुछ सभ्य कहे जाने वाले डरपोकों का भी साथ जरुरी है . उनसे भी चाचा , दादा भैया ,बेटा का रिश्ता बनाना फायदे मंद हो सकता है . वक्त जरुरत पर ये आपके बड़े काम आ सकते हैं . ये आपसे प्रगाढ़ता तो नहीं बनायेगें परन्तु हाँ में हाँ जरुर मिलायेगें .इससे आपकी छवि क्षेत्र में लोकनायक की जरुर बनेगी.हर वर्ग हर उम्र के लोगों के संपर्क में रहिये .कुछ दर कर , कुछ आपके प्रभामंडल से प्रभावित होकर आपके पाले में रहेगें .नौजवान लोगों से ज़रा सावधान रहिये . बाबा रामदेव एवं अन्ना हजारे के भारतीय परिदृश्य में आने के बाद ये बड़े खतरनाक हो गए हैं . सही को सही और गलत को गलत कहने से ये हिचक नहीं रहे हैं .कब इनमे स्वविवेक का कीड़ा कुलबुलाने लगे , अंतरात्मा जाग उठे कहा नहीं जा सकता . यदि ये आपके विरोध में खड़े हो गए तो आपको कहना पड़ सकता है दबंगई गयी भाड़ में – – – – – – – – -.बस इतनी बात याद रखिये , दो कदम आगे और चार कदम पीछे . यह आपका ब्रम्ह वाक्य होना चाहिए .जोड़ तोड़ अपने आप हो जायेगी .इन नुस्खों का पालन करिए भगवान ने चाहा तो आप पक्के दबंग हो जायेगें .
सरकार भी अपनी दबंगई दिखा रही है . आज भारत का नागरिक २८ रुपये से ऊपर खर्च पर अमीर की श्रेणी में आता है और भारत में ही ३५ लाख रुपये का दो टायलेट बनाया जा रहा है , जबकि गाँवों में एक टायलेट के लिए ३०००रुपये दिए जाते हैं . सभी काम नियम कायदे से कानून के दायरे में रह कर किया जा रहा है . सरकार कहती है कोई अनियमितता नहीं हुई . सभी काम टेंडर लेकर दे कर किया जा रहा है .अधिकारी कहते है ” वे सरप्राइज हैं ” .सरकार के अंग कहते हैं यह सरकार को बदनाम करने की विपक्षियों की साजिश है सरकार ने यह नहीं किया है ,फलां विभाग ने किया है . जो भी जिम्मेदार होगा उसके विरुद्ध कार्यवाही होगी . वे यह भूल जाते है कि शासन सरकार के इकबाल से चलता है . आज सरकार के पास कितना इकबाल बचा है यह तो खुद सरकार को भी पता नहीं है . इसे कहते हैं “सेंधिया चोर “. सेंध में घुस कर गाना गाना . यह है सरकारी दबंगई का ताज़ा उदाहरण . आप क्या कर लेगें ? अधिक से अधिक सरकार जांच बैठाएगी , जांच होगी ,वर्षों लगेगें , ३५ लाख की जांच पर सत्तर लाख खर्च होंगे तब तक आप भी भूल जायेगें , हम भी भूल जायेगें , लोग भी भूल जायेगें . बस रह जायेगी धुल खाती फाइलें . दबंगई चलती रहेगी , चलती रहेगी , चलती – – – – – – – -.
मानव की सबसे बड़ी बिमारी अहंकार है . अहंकार मनुष्य में दबंग बनने की लालसा उत्पन्न करता है . अब यहीं से आदमी का पराभव प्रारंभ होता है . जितना बड़ा दबंग होगा उसे उतनी ही बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है . यह इस क्षेत्र का इतिहास रहा है .दबंगता का यह सिलसिला बदलता रहता है . कोई हफ्ते भर का , कोई महीने का , कोई साल का , कोई बहुत बड़ा हुआ तो कुछ साल का , फिर वही चार दिन की चाँदनी – – – – – – – – – – – .दूसरा आयेगा वह भी इसी तरह का दबंग बनने का प्रयास करता रहेगा , हम आप उसकी दबंगई देखने ,सुनने ,बर्दाश्त करने के लिए अभिशप्त रहेगें .कोई भी सिकंदर महान की वसीयत को पढ़ने को तैयार नहीं है ,जिसमे उसने कफन के बाहर दोनों हाथ रखने की वसीयत की थी ताकि लोग जान सकें कि विश्व विजेता भी जाते समय इस संसार से कुछ भी लेकर जा नहीं सका .

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