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आधी आबादी की मांग !!!

bebaak
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दोपहर को समाचार देख रहा था . पुलिस नौजवानों को घेर कर “वाटर कैनन ” चला रही थी .यह क्रम करीब २० मिनट चला होगा .नौजवान लडके लड़कियां टस से मस नहीं हुई . पुलिस कुछ देर शांत रही .फिर पुलिस ने एक जगह इकट्ठा होना शुरू किया .अब बेंत उठाये ,भांजते लडके -लड़कियों की तरफ पुलिस के “जवान ” दौड़ पड़े , जो अपराधियों को देखते ही गली कोने में दुबक जाते हैं . कुछ लडके लड़कियां घायल हुई .एक अम्बुलेंस से एक घायल को ले जाया जा रहा था .एक लड़की को कुछ लोग उठा कर ले जा रहे थे . अब आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं .लोग पानी से आँख साफ कर रहे हैं . फिर आकर डट जा रहे हैं .ये लोग भाड़े के नहीं हैं ,जो भाग जाय . फिर और फिर और फिर ये घायल होकर आँख धोकर फिर डट जा रहे हैं . सभी २५ से कम उम्र के नज़र आ रहें हैं “वी वांट जस्टिस ” के नारे लगाए जा रहे हैं . न्याय की मांग करना सभी का अधिकार है ,वे भी मांग रहे हैं .फिर पानी की बौछार छोड़ी जा रही है . आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं .
पुलिस का भगाना ,लोगों का फिर वापस आना , यह प्रक्रिया चल रही है . किसी सरकारी प्रतिनिधि द्वारा उपस्थित होकर कोई आश्वाशन नहीं दिया जा रहा है . संसद के सदस्य छुट्टी मनाने जा चुके हैं .क्या आज उत्पन्न हो रही स्थिति को शांत करने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना उचित नहीं होगा ?इसका निर्णय कौन करेगा ? क्या राष्ट्र पति को आगे आकर घोषणा नहीं करनी चाहिए ? कानून तो संसद बनाएगी . सांसद तो रजाई ओढ़ कर अपने घर में सो रहे हैं . यहाँ ठंढक में बच्चों के ऊपर “वाटर कैनन ” छोड़ा जा रहा है . ये क्या मांग रहे हैं ? बस इनका तो कहना है ” न्याय चाहिए “, जो इनका अधिकार है . देश में हो रहे अपराधों के विरुद्ध आधी आबादी को न्याय दिलाने के लिए क्या विशेष अदालतों का गठन उचित नहीं है ? कम समय में कार्यवाही पूर्ण कर न्याय की घोषणा की मांग क्या अनुचित है ? समाज में ऐसे वातावरण की मांग जिसमे आधी आबादी शान्ति से , सकून से ,इज्जत से रह सके , क्या अनुचित है ? गुजरात में आधी आबादी ने क्या करिशमा किया , यह सभी जानते हैं , नेताओं को भी सोचना चाहिए . अब समय आ गया है कि इनकी बात को भी गंभीरता से देखा जाय , सोचा जाय . ये बँटी नहीं हैं , अब एक जुट हो रही हैं . मैंने देखा है , एक वीराने में एक महिला को बच्चा होने वाला था , वहां उपस्थित सभी महिलायें एक होकर उसकी सेवा में जुट गईं . वहां न तो कोई अछूत था , न कोई हिन्दू ,न कोई मुसलमान , बस वहां कोई था तो केवल महिलायें . अपने ऊपर हो रहे जुल्म को ख़त्म करने के लिए अब इन्हें ही पहल करनी होगी और ये पहल कर रही हैं आज दिल्ली में हुए प्रदर्शन में महिलाओं -लड़कियों की तादात सबसे ज्यादा थी . यह जागरूकता की निशानी है और शुभ संकेत भी . इन नेताओं को उस स्थिति का अंदाजा भी लगाना चाहिए जब आधी आबादी एक जुट हो जायेगी . समय को पहचानिए ,अन्यथा बहुत देर हो जायेगी !

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