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पतन की पराकाष्टा

bebaak
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पृथ्वी बनने के साथ नर और मादा की संरचना हुई .समय- काल, परिस्थिति केअनुसार समाज की रचना हुई .समाज की मुख्य धुरी नर और ,मादा रहे हैं इनके जीवन स्तर को व्यवस्थित रखने हेतु नियम, कायदे, कानून की जरुरत महसूस हुई . बदलाव होते रहे , होते रहे जिसका परिणाम आज के नियम कानून हैं .इनमें भी कमियाँ हैं . समाज बदलाव हेतु करवट बदल रहा है बदलाव होना स्थिति जन्य है , अनिवार्य है . ऐसे ही बदलावों से आज समाज वर्त्तमान स्वरूप को प्राप्त हुआ है . निकट भविष्य में , वर्त्तमान परिस्थिति को देखते हुए ,इसमें और भी बदलाव सन्निकट हैं . बदलते स्वरूप के परिप्रेक्ष्य में बदलाव अपरिहार्य है .नर -नारी जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने के लिए बराबर के हिस्सेदार हैं . साथ -साथ चलते हुए कुछ “हूँ -तूँ ” होती रही है , आगे भी होती रहेगी . यही जीवन की मिठास है . साथ -साथ रहने की अनिवार्य शर्त है , एक दुसरे का सम्मान . सम्मान बनाए रखने के लिए जरुरी है एक दुसरे का सहयोग , वह भी बिना किसी भेद भाव के . जैसे परिवार में साहचर्य बनाए रखने के लिए एक दुसरे का सम्मान, सहयोग जरुरी है , उसी प्रकार समाज में भी यह निहायत जरुरी है . परिवार , समाज का ही एक छोटा प्रतिरूप है .कई परिवारों की टूटन एक दिन समाज की टूटन बन जाती है .
दिल्ली में रोंगटे खडा कर देने वाला विभत्स हादसा हुआ . मीडिया जागरुक हुआ , हर जगह के छोटे बड़े हादसों को “ब्रेकिंग न्यूज “प्राप्त हुई . दिल दहल उठा .यह क्या हो रहा है ? हम किधर जा रहे हैं ?दिल्ली हादसे के बाद टी.वी. पर लड़कियों ,महिलाओं के बयान सुन कर भौचक रह गया . लड़कियां कह रही थीं की ,बस में शरीर के ऐसे -ऐसे स्थानों को छुआ(नोचा ) जाता है कि मन क्रोध एवं वितृष्णा से भर उठता है . इच्छा होती है कि एसिड से उन स्थानों को साफ किया जाय. कई -कई दिन तक मन खराब रहता है , दुखी रहता है . ऐसा एक नहीं कई लड़कियों ने कहा . इससे यही परिलक्षित होता है कि यह कोई एक दो घटना नहीं है वरन ऐसा अमूमन हो रहा है . ऐसी घटना का न होना ही अपवाद है .आखिर बस में चलने वाले लडके -आदमी भी तो दिल्ली के ही होंगे . उनकी बहन बेटियाँ भी बस में चलती होंगी .उनके साथ भी ऐसा होता होगा . क्या लड़की होना ही तो अभिशाप नहीं है ?
इसी तरह एक टी.वी.चैनल ने “स्टिंग आपरेशन ” किया जिसमें विभिन्न शहरों में सड़क पर अकेली लड़की को पाकर लोग फब्तियां कस रहे थे , इशारे कर रहे थे , विभिन्न भंगिमाएं बना रहे थे . यह सब देख कर लड़की का बाप होना दुर्भाग्य पूर्ण लगता है . कन्या भ्रूण ह्त्या पर कानून बनाए जा रहे हैं , बनाना भी चाहिए , यह अनैतिक भी है . परन्तु वही कन्या जब लड़की बनती है तो उसकी अस्मत से खेलने वाले गली कुचे से लेकर सार्वजनिक स्थानों तक में मिल जायेंगे . लड़की कहीं भी सुरक्षित नहीं है . लड़कियों की चीत्कार सुन कर कलेजा मुंह को आता है .ये लडके छेड़ने वाले , लूटने वाले कौन हैं ? ये भी हमारे समाज के ही अंग हैं , हममे से ही एक हैं .क्या इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं है ?इनकी उच्छ्रिन्खालता एवं अनैतिक कार्यों के लिए क्या ये ही जिम्मेदार हैं ?क्या इनके माँ- बाप ,या समाज जिम्मेदार नहीं है ?
कुछ लोग कपडे कम या छोटा होने को लेकर आपत्ति जताते हैं , कुछ साथ में मर्द के होने की वकालत करते हैं , कुछ अकेले स्थानों पर जाने की मनाहीं करते हैं , परन्तु इधर जीतनी भी घटनाएँ हुई हैं या हो रही हैं या उजागर हो रही हैं उनमें इनका कोई सम्बन्ध नहीं है . दिल्ली में घटना के समय साथ में पुरुष सदस्य था , हिसार में सरे राह , दिन के उजाले में , भरी सड़क पर घटना हुई . उसके बाद आकर बचाने वाले से मार पिट की गई .राबर्ट्सगंज में साथ में पति था . इसी प्रकार हो रही अन्य घटनाएँ मनुष्य के जानवर बनने की गाथा कह रही हैं . एकांगी सोच वाले तमाम दलीलें दे रहे हैं परन्तु समाज में हो रही गिरावट की तरफ किसी का ध्यान नहीं है . जिस तरह डकैत लोंगो की धन संपत्ति लुट लेते हैं तो यह कहा जाय कि पैसे गहने घर पर क्यों रखते हैं बैंक या लाकर में रखिये . उसी तरह लड़की की इज्जत है . उसे घर के बाहर निकलने मत दीजिये , सात तालों में बंद करके रखिये . क्या यह आज के युग में संभव है ? भारत के विकास में आज नारी शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है . जी.डी.पी.के आंकड़ों को यदि देखा जाय तो महिलाओं का इसमें बहुत महत्वपूर्ण हाथ नज़र आता है .महिलायें पढ़ लिख कर , बराबरी के साथ , हर क्षेत्र में गरिमापूर्ण ढंग से आगे बढ़ रही हैं , परिवार को एक अच्छी जिंदगी दे रही हैं .फिर इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है ?

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