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आखिर धर्म निरपेक्ष कौन ????

bebaak
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चुनाव प्रक्रिया चालू है |हर ओरधर्म निरपेक्ष ,पंथ निरपेक्ष ,साम्प्रदायिकता , एवं सांप्रदायिक ताकतें आदि शब्दों का प्रयोग जोर -शोर से हो रहा है |लोग-बाग पढनें को, सुनने को मजबूर हैं | सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ गठजोड़ जारी है | सभी कह रहें हैं कि वे धर्म निरपेक्ष हैं |सुनने में मज़ा आ रहा है |लोग किंकर्तव्य विमूढ़ हैं |मुलायम सिंह यादव धर्म निरपेक्ष? ताकतों के अलम्बरदार बने घूम रहे हैं |सोनिया गांधी धर्मनिरपेक्ष? ताकतों से मिल रही हैं |धर्म निरपेक्ष ? मुस्लिम वोट बँटे नहीं ,इसकी जुगत की जा रही है |सांप्रदायिक ताकतों को हराने के लिए पूरी कोशिश की जा रही है |अब प्र्श्न यह उठता है कि आखिर धर्म निरपेक्ष कौन है ?कथित धर्मनिरपेक्ष दलों द्वारा इतनी बड़ी मुहीम चलाई जा रही है , इसका कुछ न कुछ निहितार्थ तो होगा ही |
धर्मनिरपेक्ष दो शब्दों के युग्म से बना है | पहला शब्द है धर्म ,दूसरा शब्द है निरपेक्ष |इसका शाब्दिक अर्थ एवं भावार्थ हुआ “धर्म से निरपेक्ष “अर्थात जो धर्म से विरत हो , विमुख हो या जिसकी धर्म में रूचि न हो |दूसरे शब्दों में जो राक्षसी संस्कृति के संवाहक हों , उन्हें धर्म निरपेक्ष की संज्ञा दी जा सकती है | धर्म का किसी भाषा में कोई पर्यायवाची नहीं है |पुराने साहित्य के अनुसार, धर्म का अर्थ है जो शरीर धारण कर सके |चोरी न करना , झूठ न बोलना ,सत्य का साथ देना , इत्यादि मनुष्य का धर्म है | इसके विपरीत ,जो मानवता के धर्म को न मानता हों , राक्षसी प्रवृति को मानता हों , वह वास्तविक रूप में धर्म निरपेक्ष है |आज भारतीय राजनीति में सब अपने को धर्म निरपेक्ष कहने में एक दूसरे से बढ़ -चढ़ कर आगे रहने की कोशिश कर रहे हैं |लगता है पूरा हिंदुस्तान धर्मनिरपेक्ष हों गया है या होजाने की कगार पर है |
इसी तरह दूसरा शब्द “साम्प्रदायिकता “का बड़े जोर- शोर से प्रयोग किया जा रहा है |भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग -अलग संप्रदाय हैं |,अलग -अलग क्षेत्रों में समय -समय पर समाज सुधारक , आध्यात्मिक गुरु होते रहें हैं |उन लोगों ने समाज को एक नई दिशा दी , एक नई सोच दिया , अध्यात्म के क्षेत्र में कुछ नई मान्यताएं प्रतिपादित की ,एक नई विचार धारा का प्रस्फुटन हुआ , वहीँ पर नए संप्रदाय /पंथ का जन्म हुआ | केवल उस पंथ /संप्रदाय के विचारों को ही सही मानने एवं बाकी के विचारों को फिजूल की बकवास मानने वालों को मोटे तौर पर साम्प्रदायिक कहा जा सकता है |भारत में हिन्दू जीवन पद्धति से जीवन जीने वाले लोगों में विभिन्न संप्रदाय के मानने वाले लोग हैं ,उनमें विचारों में भिन्नता है |कोई एक देव को पूजता है ,कोई बहु देव की पूजा करता है ,कोई किसी की पूजा नहीं करता है वरन एक जगत नियंता को मानता है , कोई किसी को नहीं मानता है |इसी प्रकार की विभिन्न स्थितियां हैं , परन्तु लोग एक दूसरे से जुड़े हुए हैं | कोई पूजा करता है परन्तु दूसरे को आपत्ति नहीं होती |एक ही परिवार में विभिन्न संप्रदाय को मानने वाले लोग मिल जायेंगे |विचारों में भिन्नता होने के बाद भी एक दूसरे में सौहार्दय है | किसी को भी सांप्रदायिक नहीं कहा जा सकता है | हिन्दू जीवन पद्धति से जीवन जीने वाला कभी भी सांप्रदायिक हों ही नहीं सकता , क्योंकि उसमें सतत परिवर्तन की संभावना बनी रहती है |परन्तु विदेशों से आयातित विचारों के साथ ऐसी बात नहीं है | उनका केवल एक ही उद्देश्य है , अपनी संख्या बल को बढ़ाना और एक कुनबे में रहना |यह उनकी मजबूरी है किवे अपने लोगों को एक जुट किये रहें| आज विडम्बना यह है कि हिन्दू जीवन पद्धति से जीवन जीने वालों को छोड़ कर सभी अपने को धर्म निरपेक्ष कहने में शर्म महसूस नहीं कर रहे हैं |आज मुस्लिम वोट का बंटवारा न हों इसके लिए सभी प्रकार के प्रपंच किये जा रहे हैं जैसे कि मुसलमान इंसान न होकर भेड़ -बकरी हों गया है| एक जिस राह जायेगीं सभी उसी राह जायेगीं |उनकी अपनी कोई सोच नहीं है |अपना कोई विचार नहीं है |जबकि चुनाव का यही मतलब है कि सभी अपने -अपने विचार से प्रत्याशियों को वोट देंगें | इस चुनाव के प्रारम्भ में यही प्रतीत हों रहा था कि लोग अपनी -अपनी पसंद के उम्मीदवारों को वोट देंगें परन्तु जैसे जैसे समय बीत रहा है कथित धर्म निरपेक्ष ताकतों को यह कैसे रास आता !पश्चिमी उ .प्र. में खूब जहर का बीज बोने का प्रयास किया गया |चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई परन्तु जहर का खेल करने वाले तो अपना खेल कर ही चुके थे , बस इसका असर आगे के चरणों के चुनाव पर न पड़े , चुनाव आयोग को इस पर नज़र रखनी पड़ेगी , आज के समय की यही मांग है |

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